Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन मन्दिर
भारतीय वास्तुकला का विकास पहले स्तूप-निर्माण में, फिर गुफा-चैत्यों व बिहारों में, और तत्पश्चात् मंदिरों के निर्माण में पाया जाता है। स्तूपों व गुफाओं का विकास जैन परम्परा में किस प्रकार हुआ, यह ऊपर देखा जा चुका है। किन्तु वास्तुकला ने मंदिरों के निर्माण में ही अपना चरम उत्कर्ष प्राप्त किया है। इन मन्दिरों के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण ११ वीं शती व उसके पश्चात् काल के उपलब्ध हैं । इन मन्दिरों के निर्माण में अभिव्यक्त योजना व शिल्प के चातुर्य की ओर ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है कि इन मन्दिरों का निर्माण बिना उनकी दीर्घकालीन पूर्व परम्परा के नहीं हो सकता । पाषाण को काटकर गुफा चैत्यों के निर्माण की कला का चरमोत्कर्ष हम एलोरा की गुफाओं में देख चुके हैं। कहा जा सकता है कि उसी के आधार पर आगे स्वतन्त्र मन्दिरों के निर्माण की परम्परा चली । किन्तु उस कला से स्वतन्त्र संरचनात्मक (स्ट्रक्चरल) मन्दिरों के शिल्प में बड़ा भेद है, जिसके विकास में भी अनेक शतियां व्यतीत हुई होगी। इस सम्बन्ध में उक्त काल से प्राचीनतम मन्दिरों का अभाव बहुत खटकता है ।
प्राचीनतम बौद्ध व हिन्दू मन्दिरों के निर्माण की जो पाँच शैलियां नियत की गई हैं, वे इस प्रकार है-(१) समतल छत वाले चौकोर मन्दिर, जिनके सम्मुख एक द्वारमंडप रहता है। (२) द्वारमंडप व समतल छत वाले वे चौकोर मन्दिर जिनके गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा भी बनी रहती है । ये मन्दिर कभी कभी दुतल्ले भी बनते थे। (३) चौकोर मन्दिर जिनके ऊपर छोटा व चपटा शिखर भी बना रहता है। (४) वे लम्बे चतुष्कोण मन्दिर जिनका पिछला भाग अर्द्धवत्ताकार रहता है, व छत कोठी (बैरल) के प्राकार का बनता था। (५) वे वृत्ताकार मन्दिर जिनकी पीठिका चौकोर होती है।
इन शैलियों में से चतुर्थ शैली का विकास बौद्धों की चैत्यशालाओं से व पाँचवीं का स्तूप-रचना से माना जाता है। चतुर्थ शैली के उदाहरण उसमानाबाद जिले के तेर नामक स्थान के मन्दिर व चेजरला ( कृष्णा जिला ) के. कपोतेश्वर मन्दिर में पाये जाते हैं । ये चौथी-पांचवीं शती के बने हैं, और आकार में छोटे हैं। इस शैली के दो अवान्तर भेद किये जाते हैं, एक नागर व दूसरा द्राविड़, जो आगे चलकर विशेष विकसित हुए; किन्तु जिनके बीज उपर्युक्त उदाहरण में ही पाये जाते हैं। पाँचवी शैली का उदाहरण राजगृह के मणियार मठ (मणिनाग का मन्दिर) में मिलता है। प्रथम शैली के बने हुए
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