Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन मन्दिर
मंदिर के गर्भालय में
बाहुबली मंदिर ध्वस्त अवस्था में विद्यमान है । किन्तु उसका गर्भगृह, सुखनासी, मंडप व सुन्दर सोपान पथ तथा गर्भगृह के भीतर की सुन्दर मूर्ति अब भी दर्श नीय हैं। इस काल की कला का पूर्ण परिचय कराने वाला वह पंचकूट बस्ति नामक मंदिर हैं जो ग्राम के उत्तरी बाह्य भाग में स्थित हैं । एक छोटे से द्वार के भीतर प्रांगण में पहुँचने पर हमें एक विशाल स्तम्भ के दर्शन होते हैं, जिस पर प्रचुरता से सुन्दर चित्रकारी की गई हैं। आगे मुख्य एक स्तम्भमय मंडप से होकर पहुँचा जाता है। मंडप में यक्षिणियां स्थापित हैं । गर्भगृह के दोनों पार्श्वो में भी दो अपेक्षाकृत छोटी भित्तियां हैं। इस मंदिर से उत्तर की ओर वह छोटा सा पार्श्वनाथ मंदिर हैं जिसकी छत की चित्रकारी में हमें तत्कालीन दक्षिण भारतीय शैली का सर्वोत्कृष्ट और अद्भुत स्वरूप देखने को मिलता है । इसी के सम्मुख चन्द्रनाथ मंदिर है, जो अपेक्षाकृत पीछे का बना है ।
भी जैन देवियां व
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हल्लि से अगुम्बे की ओर जाने वाले मार्ग पर गुड्ड नामक तीन हजार फुट से अधिक ऊँची एक पहाड़ी है, जिस पर अनेक ध्वंसावशेष दृष्टिगोचर होते हैं, और उस स्थान को एक प्राचीन जैन तीर्थं सिद्ध करते हैं । एक पार्श्वनाथ मन्दिर अब भी इस पहाड़ी पर शोभायमान है, जो आसपास की सुविस्तृत पर्वत श्रेणियों व उर्वरा घाटियों को भव्यता प्रदान कर रहा है । पर्वत के शिखर पर एक प्राकृतिक जलकुण्ड के तट पर इस मंदिर का उच्च अधिष्ठान है । द्वार सुन्दरता से उत्कीर्ण है । सम्मुख मानस्तम्भ है । मंडप के स्तम्भ भी चित्रमय हैं, तथा गर्भगृह में पार्श्वनाथ की विशाल कायोत्सर्ग मूर्ति है । जिसे एक दीर्घकाय नाग लपेटे हुए है, और ऊपर अपने सप्तमुखी फण की छाया किये हुए है । मूर्ति के शरीर पर नाग के दो लपेटे स्पष्ट दिखाई देते हैं, जैसा अन्यत्र प्रायः नहीं देखा जाता। पहाड़ के नीचे उतरते हुए हमें जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष मिलते हैं । तीर्थंकरों की सुन्दर मूर्तियाँ व चित्रकारी - युक्त पाषाण खंड प्रचुरता से यत्र-तत्र बिखरे दिखाई देते हैं, जिनसे इस स्थान का प्राचीन समृद्ध इतिहास आंखों के सम्मुख झूल जाता है ।
धारवाड़ जिले में गडग रेलवे स्टेशन से सात मील दक्षिण-पूर्व की ओर लकुंडी ( लोक्कि गुंडी) नामक ग्राम है, जहाँ दो सुन्दर जैन मन्दिर हैं । इनमें के बड़े मन्दिर में सन् १९७२ ई० का शिलालेख है । यह भी ऐहोल व पट्टदकल के मन्दिरों के समान विशाल पाषाण - खंडों से बिना किसी चूने -सीमेन्ट के निर्मित किया गया है । नाना भूमिकाओं द्वारा ऊपर को उठता हुआ द्राविड़ी शिखर सुस्पष्ट है यहाँ खुरहरे रेतीले पत्थर का नहीं, किन्तु चिकने काले पत्थर का
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