Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन गुफाएं
सो धण्णु सलक्खर हरिय वंभु । जें लयण कराविउ सहसखंभु ॥
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अर्थात् पर्वत पर कुछ ऊपर चढ़ने पर उन्होंने उस लयण (गुफा) को ऐसे देखा जैसे इन्द्र ने देवविमान को देखा हो । उसमें प्रवेश करने पर करकंडु के मुख से हठात् निकल पड़ा कि धन्य है वह सुलक्षण पुण्यवान् पुरुष जिसने यह सहस्त्रस्तंभ लयन बनवाया है ।
( क ० च० ४, ५ ) ।
दक्षिण के तामिल प्रदेश में भी जैन धर्म का प्रचार व प्रभाव बहुत प्राचीन काल से पाया जाता है । तामिल साहित्य का सबसे प्राचीन भाग 'संगम युग' का माना जाता है, और इस युग की प्राय: समस्त प्रधान कृतियां तिरुकुरुल आदि जैन या जैनधर्म से सुप्रभावित सिद्ध होती है । जैन द्राविड़संघ का संगठन भी सुप्राचीन पाया जाता है । अतएव स्वाभाविक है कि इस प्रदेश में भी प्राचीन जैन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हों । जैन मुनियों का एक प्राचीन केन्द्र पुडुकोट्टाई से वायव्य दिशा में 8 मील दूर सित्तन्नवासल नामक स्थान रहा है । यह नाम सिद्धाना वासः से अपभ्रष्ट होकर बना प्रतीत होता है । यहां के विशाल शिला - टीलों में बनी हुई एक जैन गुफा बड़ी महत्वपूर्ण है । यहाँ एक ब्राह्मी लिपी का लेख भी मिला है, जो ई० पू० तृतीय शती का (अशोककालीन) प्रतीत होता है । लेख में स्पष्ट उल्लेख है कि गुफा का निर्माण जैन मुनियों के निमित्त कराया गया था । यह गुफा बड़ी विशाल १०० x ५० फुट है । इसमें अनेक कोष्ठक हैं, जिनमें समाधि - शिलाएं भी बनी हुई हैं । ये शिलाएं ६x४ फुट हैं । वास्तुकला की दृष्टि से तो यहु गुफा महत्वपूर्ण है ही, किन्तु उससे भी अधिक महत्व उसकी चित्रकला का है, जिसका विवरण आगे किया जायगा । गुफा का यह संस्कार पल्लव नरेश महेन्द्रवर्मन् ( आठवीं शती) के काल में हुआ है ।
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देवालय है, और
हैं । स्तम्भों की
दक्षिण भारत में बादामी की जैन गुफा उल्लेखनीय है, जिसका निर्माण काल अनुमानतः सातवीं शती का मध्यभाग है । यह गुफा १६ फुट गहरी तथा ३१X१६ फुट लम्बी-चौड़ी है । पीछे की ओर मध्य भाग में तीनों पावों की दीवालों में मुनियों के निवासार्थ कोष्ठक बने आकृति एलीफेन्टा की गुफाओं के सदृश है । यहां चमरधारियों तीर्थंकर की मूल पद्मासन मूर्ति के अतिरिक्त दीवालों व स्तम्भों पर भी जिनमुर्तियां खुदी हुई हैं। माना जाता है कि राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (८ वीं शती) ने राज्य त्यागकर व जैन दीक्षा लेकर इसी गुफा में निवास किया था । गुफा के बरामदों में एक ओर पार्श्वनाथ व दूसरी ओर बाहुबली की लगभग ७३
सहित महावीर
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