Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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अपभ्रंश
(अनुवाद)
भविष्यदत्त कुमार ने उस धनकंचन से पूर्ण समृद्ध नगर को निर्जन होने के कारण ऐसा शोभाहीन देखा, जैसे मानों जलरहित कमल सरोवर हो । कुमार ने नगर में प्रवेश किया और देखा कि वहां ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो लोचनों को इष्ट न हो । वापी और कूप वहां खूब स्वच्छ जल से पूर्ण थे । मठों, विहारों व देवगृहों से नगर खूब रमणीक था । उसने देवालयों में प्रवेश किया, किन्तु वहां उसे एसा कोई नहीं दिखाई दिया जो पूजा करना चाहता हो । फूलों की खूब सुगंध आ रही थी; किन्तु वहां ऐसा कोई नहीं था, कोई उन्हें हाथ से तोड़कर सूंघना चाहे । पका हुआ शालिवान्य खेतों में ही नष्ट हो रहा था, कोई उन्हें बचाकर घर ले जाने वाला वहां नहीं था । सरोवर में भौंरों के भ्रमण और गु ंजार से युक्त कमल विद्यमान थे, किन्तु वहां कोई ऐसा नहीं था, जो उन्हें तोड़कर मंदिर में ले जावे। उसने विस्मय से देखा कि वहां उत्तम फल लगे हैं, जो हाथ से ही तोड़े जा सकते हैं; किन्तु न जाने किस कारण से कोई उन्हें तोड़कर नहीं खाता । वहां पराये धन को देखकर क्षुब्ध या लुब्ध होने वाला कोई नहीं था । नगर की ऐसी निर्जन अवस्था देखकर कुमार अपने आप में विकल्प और चिन्तन करने लगा ।
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