Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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तत्व-ज्ञान
व्याख्यान- ३
जैन दर्शन
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समस्त जैनदर्शन का परिचय संक्षेप में इस प्रकार दिया जा सकता है । विश्व के मूल में जीव और अजीव ये दो मुख्य तत्व हैं । इनका परस्पर संपर्क पाया जाता है, और इस संपर्क द्वारा ऐसे बन्धनों या शक्तियों का निर्माण होता है, जिनके कारण जीव को नाना प्रकार की दशाओं का अनुभव होता है । यदि यह संपर्क की धारा रोक दी जाय और उत्पन्न हुए बन्धनों को जर्जरित या विनष्ट कर दिया जाय, तो जीव अपनी शुद्ध, बुद्ध व मुक्त अवस्था को प्राप्त हो सकता है । ये ही जैन दर्शन के सात तत्व हैं, जिनके नाम हैं- जीव, जीव, आस्रव, बंध, संवर निर्जरा और मोक्ष । जीव और अजीव, इन दो प्रकार के तत्वों का निरूपण जैन तत्वज्ञान का विषय है आस्रव और बंध का विवेचन जैन कर्म सिद्धान्त में आता है, और वही उसका मनोविज्ञान - शास्त्र है । संवर और निर्जरा चारित्र विषयक है, और यही जैन धर्म गत आचार-शास्त्र कहा जा सकता है, तथा मोक्ष जैन-धर्मानुसार जीवन की वह सर्वोत्कृष्ट अवस्थां है जिसे प्राप्त करना समस्त धार्मिक क्रिया व आचरण का अन्तिम ध्येय है । यहां जैन दर्शन की इन्हीं मुख्य शाखानों का क्रमशः परिचय व विवेचन करने का प्रयत्न किया जाता है |
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जीव तत्व
संसार में नाना प्रकार की वस्तुओं और उनकी अगणित अवस्थाओं का दर्शन होता है । दृश्यमान समस्त पदार्थों को दो वर्गों के विभाजित किया जा
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