Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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नगर विन्यास
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वहां दुकानों में व्यापारियों द्वारा नाना प्रकार के शिल्प तथा सुखोपभोग की वस्तुएं रखी गई थी । वह सिघाटक (त्रिकोण), चौकोन व चौकों में विविध वस्तुएं खरीदने योग्य दुकानों से शोभायमान थी । उसके राजमार्ग राजाओं के गमनागमन से सुरम्य थे, और वह अनेक सुन्दर-सुन्दर उत्तम घोड़ों, मर - हाथियों, रथों व डोला - पालकी आदि वाहनों से व्याप्त थी । वहां के जलाशय नव प्रफुल्ल कमलों से शोभायमान थे । वह नगरी उज्जवल, श्वेत महाभवनों से जगमगा रही थी, और प्रांखे फाड़-फाड़कर देखने योग्य थी । उसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता था । वह ऐसी दर्शनीय, सुन्दर और मनोज्ञ थी । "
गया है । इन द्वारों में
प्राचीन नगर का यह वर्णन तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है - ( १ ) उसकी समृद्धि व धन-वैभव सम्बन्धी, (२) वहां नाना प्रकार की कलाओं, विद्याओं व मनोरंजन के साधनों सम्बन्धी, और (३) नगर की रचना संबंधी । नगर-रचना में कुछ बातें सुस्पष्ट और ध्यान देने योग्य हैं । नगर की रक्षा के निमित्त उसको चारों ओर से घेरे हुए परिखा या खाई होती थी । तत्पश्चात् एक प्राकार या कोट होता था, जिसकी चारों दिशाओं में चार-चार द्वार होते थे । प्राकार का श्राकार धनुष के समान गोल कहा गोपुर और तोरणों का शोभा की दृष्टि से विशेष स्थान था । कोट कंगूरेदार कपिशीर्षकों से युक्त बनते थे, और उनपर शतघ्नी आदिक नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की स्थापना की जाती थी । नगर में राजमार्गों व चरियापथ (मेन रोड्स एवं फुटपाथ्स) बड़ी व्यवस्था से बनाये जाते थे, जिसमें तिराहों व चौराहों का विशेष स्थान था । स्थान-स्थान पर सम्भवतः प्रत्येक चौकों (खुले मैदान - पार्कस् ), उद्यानों, सरोवरों व कूपों का जाता था । घर कतारों से बनाये जाते थे, और देवालयों; की सुव्यवस्था थी ।
जैन सूत्रों से प्राप्त नगर का यह वर्णन पुराणों, बोध ग्रन्थों, तथा कौटिate अर्थशास्त्र आदि के वर्णनों से मिलता हैं, तथा पुरातत्व संबंधी खुदाई से जो कुछ नगरों के भग्नावशेष मिले हैं उनसे भी प्रमाणित होता है । उदाहरणार्थ प्राचीन पांचाल देश की राजधानी अहिच्छत्र की खुदाई से उसकी परिखा व प्राकार के अवशेष प्राप्त हुए हैं । यह वही स्थान है जहां जैन परम्परानुसार तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के तप में उपसर्ग होने पर धरणेंद्रनाग ने उनकी रक्षा की थी, और इसी कारण इसका नाम भी अहिच्छत्र पड़ा । प्राकार पकाई हुई ईटों का बना व ४०-५० फुट तक ऊंचा पाया गया है। कोट के द्वारों से राजपथ सीधे नगर के केन्द्र की भोर जाते हुए पाये गये विशाल देवालय के चिन्ह मिले हैं । भारत, सांची,
हैं, और केन्द्र में एक अमरावती,
मथुरा श्रादि
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मोहल्ले में विशाल
निर्माण भी किया
बाजारों व दुकानों
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