Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन साहित्य
निरूपण बहुत कुछ तो हेमचन्द्र के अनुसार है, किन्तु कहीं-कहीं कुछ मौलिकता पाई जाती है।
छंदःकोष के कर्ता रत्नशेखर नागपुरीय तपागच्छ के हेमतिलकसूरि के शिष्य थे, जिनका जन्म, पट्टावली के अनुसार, वि० सं० १३७२ में हुआ था, तथा जिनकी अन्य दो रचनायें श्रीपालचरित्र (वि० सं० १४२८) और गुणस्थानक्रमारोह (वि० सं० १४४७) प्रकाशित हो चुकी हैं। ग्रन्थ में कुल ७४ प्राकत व अपभ्रंश पद्य हैं और इनमें क्रमशः लघु-गुरु अक्षरों व अक्षर गणों का, आठ वर्णवत्तों का, ३० मात्रा-वृत्तों का, और अन्त में गाथा व उसके भेदप्रभेदों का निरूपण किया गया है। प्राकृत-पिंगल में जो ४० मात्रावृत्त पाये जाते हैं, उनसे प्रस्तुत ग्रन्थ के १५ वत्त सर्वथा नवीन हैं । इनके लक्षण व उदाहरण सब अपभ्रंश में हैं, व एक ही पद्य में दोनों का समावेश किया गया है । गाथाओं के लक्षण आदि प्राकृत गाथाओं में हैं। अपभ्रंश छंदों के निरूपक पद्यों में बहुत से पद्य अन्यत्र से उद्धत किये हुए प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनके साथ उनके कर्ताओं के नाम, जैसे गुल्ह, अर्जुन, पिंगल आदि जुड़े हुए हैं। इनमें पिंगल के नाम पर से सहज ही अनुमान होता है कि छंदःकोश के कर्ता ने वे पद्य उपलभ्य प्राकृतपिंगल में से लिये होगें, किन्तु बात ऐसी नहीं है। वे पद्य इस प्राकत पिंगल में नहीं मिलते । कुछ पद्य ऐसे भी हैं जो यहां गुल्ह कवि कत या बिना किसी कर्ता के नाम के पाये जाते हैं, और वे ही पद्य प्राकृत पिंगल में पिंगल के नाम-निर्देश सहित विद्यमान हैं। इससे विद्वान् सम्पादक डॉ० वेलनकर ने यह ठीक ही अनुमान किया है कि यथार्थतः दोनों ने ही उन्हें अन्यत्र से लिया है; किन्तु रत्नशेखर ने उन्हें सचाई से ज्यों का त्यों रहने दिया है, और पिंगल ने पूर्व कर्ता का नाम हटाकर अपना नाम समाविष्ट कर दिया है। पिंगल को वर्तमान रचना में से रत्नशेखर द्वारा अवतरण लिये जाने की यों भी संभावना नहीं रहती, क्योंकि पिंगल में रत्नशेखर से पश्चात्कालीन घटनाओं का भी उल्लेख पाया जाता है । अतएव सिद्ध होता है कि पिंगल की जिस रचना का छन्दःकोश में उपयोग किया गया है, वह वर्तमान प्राकत पिंगल से पूर्व की कोई भिन्न ही रचना होगी, जैसा कि अन्य अनेक पिंगल सम्बन्धी उल्लेखों से भी प्रमाणित होता है।
संस्कृत में रचित हेमचन्द्र कत छंदोनुशासन (१३वीं शती) का उल्लेख छंद चूड़ामणि नाम से भी आता है । यह रचना आठ अध्यायों में विभक्त है, और उसपर स्वोपज्ञ टीका भी है। इस रचना में हेमचन्द्र ने, जैसा उन्होंने अपने व्याकरणादि ग्रन्थों में किया है, यथाशक्ति अपने समय तक आविष्कृत तथा पूर्वा
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