Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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संस्कृत कोश
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उपस्थित किया है, किन्तु अनेक गाथाओं के संशोधन की अभी भी आवश्यकता है। कोष में संग्रहीत नामों की संख्या प्रोफे० बनर्जी के अनुसार ३९७८ है, जिनमें वे यथार्थ देशी केवल १५०० मानते हैं। शेष में १०० तत्सम, १८५० तद्भव और ५२८ संशयात्मक तद्भव शब्द बतलाते हैं । उक्त देशी शब्दों में उनके मतानुसार ८०० शब्द तो भारतीय आर्य भाषाओं में किसी न किसी रूप में पाये जाते हैं, किन्तु शेष ७०० के स्रोत का कोई पता नहीं चलता।
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कोश-संस्कृत___ संस्कत के प्राचीनतम जैन कोशकार धनंजय पाये जाते हैं। इनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं एक नाममाला और दूसरी अनेकार्थनाममाला । इनकी बनाई हई नाममाला के अन्त में कवि ने अकंलक का प्रमाण, पूज्यपाद का लक्षण (व्याकरण) और द्विसंधान कर्ता अर्थात् स्वयं का काव्य, इस रत्नत्रय को अपूर्व कहा है । इस उल्लेख पर से कोष के रचनाकाल की पूर्वावधि आठवीं शती निश्चित हो जाती है। अनेकार्थ नाममाला का 'हेतावेवं प्रकारादि' श्लोक वीरसेन कृत धवला टीका में उद्ध त पाया जाता है, जिसका रचनाकाल शक सं० ७३८ है । इस प्रकार इन कोषों का रचनाकाल ई० सन् ७८०-८१६ के बीच सिद्ध होता है। नाममाला में २०६ श्लोक हैं, और इनमें संग्रहीत एकार्थवाची शब्दों की संख्या लगभग २००० है । कोषकार ने अपनी सरल और सुन्दर शैली द्वारा यथासम्भव अनेक शब्द-समूहों की सूचना थोड़े से शब्दों द्वारा कर दी है। उदाहरणार्थ, श्लोक ५ और ६ में भूमि आदि पृथ्वी के २७ पर्यायवाची नाम गिनाये हैं, और फिर सातवें श्लोक में कहा है
तत्पर्यायधरः शैलः तत्पर्यायपतिपः । तत्पर्यायरहो वृक्षः शब्दमन्यच्च योजयेत् ॥
इस प्रकार इस एक पलोक द्वारा कोषकार ने पर्वत, राजा, और वृक्ष, इनके २७-२७ पर्यायवाची ८१ नामों की सूचना एक छोटे से श्लोक द्वारा कर दी है। इसी प्रकार १५ वें श्लोक में जल के १८ पर्यायवाची नाम गिनाकर १६ वें श्लोक में उक्त नामों के साथ चार जोड़कर मत्स्य, द जोड़कर धन, ज जोड़कर पद्म और धर जोड़कर समुद्र, इनके १८-१८ नाम बना लेने की सूचना कर दी है। अनेकार्थ-नाममाला में कुल ४६ श्लोक हैं, जिनमें लगभग ६० शब्दों के अनेक अर्थों का निरूपण किया गया है ।
जैन साहित्य के इस संक्षिप्त परिचय से ही स्पष्ट हो जायगा कि उसके
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