Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग - संस्कृत
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जैनत्व का उल्लेख नहीं पाया जाता । कथाएं व नीति वाक्य पंचतंत्र के ढांचे के हैं ।
नाटक
जैन मुनियों के लिये नाटक आदि विनोदों में भाग लेना निषिद्ध है, और यही कारण है कि जैन साहित्य में नाटक की कृतियां बहुत प्राचीन नहीं मिलती । पश्चात् जब उक्त मुनि-चर्या का बंधन उतना दृढ़ नहीं रहा, अथवा गृहस्थ भी साहित्य-रचना में भाग लेने लगे, तब १३ वीं शती से कुछ संस्कृत नाटकों का सर्जन हुआ, जिनका कुछ परिचय निम्नप्रकार है :
रामचन्द्रसूरि (१३वीं शती) हेमचन्द्र के शिष्य थे। कहा जाता है कि उन्होंने १०० प्रकरणों ( नाटकों ) की रचना की, जिनमें से निर्भय भीम - व्यायोग, नलविलास, और कौमुदी - मित्रानन्द प्रकाशित हो चुके हैं । रघुविलास नाटक की प्रतियां मिली हैं, तथा रोहिणीमृगांक व बनमाला के उल्लेख कर्ता की एक अन्य रचना नाट्यदर्पण में मिलते हैं । निर्भय भीम - व्यायोग एक ही अंक का है, और इसमें भीम द्वारा बक के वध की कथा है । नलविलास १० अंकों का प्रकरण है, जिसमें नल-दमयन्ती का चरित्र चित्रण किया गया है । तीसरे नाटक में नायिका कौमुदी और उसके पति मित्रानन्द सेठ के साहसपूर्ण भ्रमण का कथानक है । यह मालती - माधव के जोड़ का प्रकरण है ।
हस्तिमल्ल कृत ( १२ वीं शती) चार नाटक प्रकाशित हो चुके हैं- विक्रान्तकौरव, सुभद्रा, मैथिलीकल्याण, और अंजनापवनंजय | कवि ने प्रस्तावना में अपना परिचय दिया है, जिसके अनुसार वे वत्सगोत्री ब्राह्मण थे, किन्तु उनके पिता गोविन्द, समन्तभद्र कृत देवागमस्तोत्र ( आप्तमीमांसा ) के प्रभाव से, जैनधर्मी हो गये थे । कवि ने अपने समय के पाण्ड्य राजा का उल्लेख किया है, पर नाम नहीं दिया। इतना ही कहा है कि वे कर्नाटक पर शासन करते थे । प्रथम दो नाटक महाभारत और शेष दो रामायण पर आधारित हैं, तथा कथानक गुणभद्र कृत उत्तरपुराण के चरित्रानुसार है । हस्तिमल्ल के उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज और मेघेश्वर, इन चार अन्य नाटकों के उल्लेख मिलते हैं ।
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जिनप्रभ सूरि के शिष्य रामभद्र ( १३ वीं शती) द्वारा रचित प्रबुद्ध - रौहिरोय के छह अंकों में नायक की चौर-वृत्ति व उपदेश पाकर धर्म में दीक्षित होने का वृत्तान्त चित्रित किया गया है । यह नाटक चाहमान (चौहान) नरेश समरसिंह द्वारा निर्मापित ऋषभ जिनालय में उत्सव के समय खेला गया था ।
यशःपाल कृत मोहराज पराजय (१३ वीं शती) में भावात्मक पात्रों के अति
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