Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
View full book text
________________
१८०
जैन साहित्य
रिक्त राजा कुमारपाल भी आते हैं। राजा धर्मपरिवर्तन द्वारा जैन धर्म में दीक्षित व कृपासुन्दरी से विवाहित होकर राज्य में अहिंसा की घोषणा, तथा निस्संतान व्यक्तियों के मरने पर उनके धनके अपहरण का निषेध कर देता है राजा का विवाह करानेवाले पुरोहित हेमचन्द्र हैं । यह नाटक शाकंबरी के चौहान राजा अजयदेव के समय में रचा गया है।
वीरसूरि के शिष्य जयसिंह सूरि कृत हम्मीरमदमर्दन के पांच अंकों में राजा वीरधवल द्वारा म्लेच्छ राजा हम्मीर (अमीर-शिकार-सुल्तान सुमसुदुनिया) की पराजय का, और साथ ही वस्तुपाल और तेजपाल मंत्रियों के चरित्र का वर्णन है । इसमें राजनीति का घटनाचक्र मुद्राराक्षस जैसा है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० १२८६ की मिली है, अत: रचनाकाल इससे कुछ पूर्व का सिद्ध होता है।
- पद्मचन्द्र के शिष्य यशश्चन्द्र कृत मुद्रित-कुमुदचन्द्र नाटक में पांच अंक हैं, जिन में अणहिलपुर में जयसिंह चालुक्य की सभा में (वि० सं० ११८१) श्वेताम्बराचार्य देवसूरि व दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र के बीच शास्त्रार्थ कराया गया है। वाद के अन्त में कुमुदचन्द्र का मुख मुद्रित हो गया। रचनाकाल का निश्चय नहीं । संभवतः कर्ता के गुरु वे ही पद्मचन्द्र हैं, जिनका नाम लधु पट्टावली (पट्टावली-समुच्चय, पृ० २०४) में आया है, और जिनका समय अनुमानतः १४- १५ वीं शती है।
मुनिसुन्दर के शिष्य रत्नशेखर सुरि कृत प्रबोध-चन्द्रोदय नाटक में भावात्मक पात्रों द्वारा चित्रण किया गया है। यह इसी नामके कृष्ण मिश्र रचित नाटक (११ वीं शती) का अनुकरण प्रतीत होता है इसमें प्रबोध, विद्या विवेक आदि नामक पात्र उपस्थित किये गये हैं।
मेघप्रभाचार्य कत धर्माभ्युदय स्वयं कर्ता के उल्लेखानुसार एक छाया नाट्य प्रबन्ध है, जो पार्श्वनाथ जिनालय में महोत्सव के समय खेला गया था। इसमें दर्शनभद्र मुनि का वृत्तान्त चित्रित किया गया है। इसका जर्मन भाषा में भी अनुवाद हुआ है।
हरिभद्र के शिष्य बालचन्द्र कत करुणावज्रायुध नाटक में वज्रायुध नृप द्वारा श्येन को अपने शरीर का मांस देकर कपोत की रक्षा करने की कथा चित्रित है, जैसा कि हिन्दू पुराणों में राजा शिवि की कथा में पाया जाता है ।
साहित्य-शास्त्र•साहित्य के आनुषंगिक शास्त्र हैं व्याकरण, छंद और कोश । जैन परम्परा में इन शास्त्रों पर भी महत्वपूर्ण रचनाएं पाई जाती हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org