Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
View full book text
________________
१७४
जैन साहित्य
शती) कृत हम्मीर-काव्य १४ सर्गों में समाप्त हुआ है, और उसमें उस हम्मीर वीर का चरित्र वर्णन किया गया है, जो सुलतान अलाउद्दीन से युद्ध करता हुआ सन् १३०१ में वीरगति को प्राप्त हुआ । काव्य लिखने का कारण स्वयं कवि ने यह बताया है कि तोमर वीरम की सभा में यह कहा गया था कि प्राचीन कवियों के समान काव्य-रचना की शक्ति अब किसी में नहीं है। इसी बात के खंडन के लिये कवि ने श्रृगार, वीर और अद्भुत रसों से पूर्ण तथा अमरचन्द्र के सदृश लालित्य व श्रीहर्ष की वक्रिमा से युक्त यह काव्य लिखा । जिनदत्तसूरि के शिष्य अमरचन्द्र सूरि कृत चतुर्विशति-जिन-चरित, पद्मानन्द-काव्य और बाल भारत का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है ।
ब्रम्हनेमिदत्त कृत श्रीपाल-चरित (सन् १५२८ ई०) में ६ सर्गों में राजकुमारी मदनसुन्दरी के कुष्ट व्याधि से पीड़ित श्रीपाल के साथ विवाह, और सिद्धचक्र विधान के माहात्म्य से उसके निरोग होने की कथा है, जिसका परिचय उसी नामके प्राकृत काव्य के सम्बन्ध में दिया जा चुका है। श्रीपाल का कथानक जैन समाज में इतना लोकप्रिय हुआ है कि उस पर प्राकृत, अपभ्रश और संस्कृत की कोई ३०-४० रचनायें मिलती हैं। (देखिये जिनरत्नकोश- डॉ. वेलंकर कृत)
नागेन्द्र गच्छीय विजयसेन सूरि के शिष्य उदयप्रभ कृत धर्माभ्युदय चौदह सर्गों का महाकाव्य है, जिसमें गुजरात के राजा वीरधवल के सुप्रसिद्ध मंत्री वस्तुपाल के चरित्र का सुन्दरता से वर्णन किया गया है । सिद्धर्षि कृत उपमितिमव-प्रपंचकथा (६०६ ई०) संस्कृत गद्य की एक अनुपम रचना है, जिसमें भावात्मक संज्ञाओं को मूर्तिमान स्वरूप देकर धर्मकथा व नाना अवान्तर कथाएं कही गई हैं । उदाहरण के लिये- यहां नगर अनन्तपुर व निवृत्तिपुर है। राजा कर्मपरिणाम; रानीकाल परिणति; साधु सदागम; व अन्य व्यक्ति संसारी निष्पुज्यक आदि । इसे पढ़ते हुए अंग्रेजी की जॉन बनयन कृत 'पिल्ग्रिम्सप्रोग्रेस' का स्मरण हो आता है, जिसमें रूपक की रीति से धर्मवद्धि, और उसमें आने वाली विघ्न-बाधाओं की कथा कही गई है। इस कृति का जैन संसार में बड़ा आदर व प्रचार हुआ, और उसके सार रूप अनेक रचनाएं निर्मित हुई, जैसे वर्धमानसूरि कृत उपमिति-भवप्रपंचा-सार-समुच्चय (११वीं शती) देवेन्द्रकृत उ० सारोद्धार (१३ वीं शती), हंसरत्नसूरि कृत सारोवार आदि ।
संस्कृत गद्यात्मक आख्यानों में धनपाल कृत तिलकमंजरी (९७० ई०) की भाषा व शैली बड़ी ओजस्विनी है । प्रमरसुन्दर कृत अंबडचरित्र बड़ी विलक्षण . कथा है । कथानायक अंबड शवधर्मों है और मंत्र-तंत्र के बल से गोरखा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org