Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
View full book text
________________
प्रथमानुयोग-प्राकृत
१४६
निर्वाण से ६२ वर्ष पश्चात् तक जीवित रहे। जैन आगम की परम्परा में उनका महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि उपलभ्य द्वादशांग का बहुभाग सुधर्म स्वामी द्वारा उन्हीं को उपदिष्ट किया गया है। प्रस्तुत रचनानुसार जम्बू का जन्म राजगृह में हुआ था। उनकी वैराग्य-वृति को रोकने के लिये अनके आठ विवाह किये गये ; तथापि उनकी धार्मिक प्रवृति रुकी नहीं, बढ़ती ही गई। उन्होंने अपनी पत्नियों का संबोधन कर, और उनकी समस्त तर्कों व युक्तियों का खंडन कर दीक्षा ले ली; यहां तक कि जो प्रभव नामक बड़ा डाकू उनके घर में चोरी के लिये घुसा था, वह भी चुपचाप उनका उपदेश सुनकर सौंसार से विरक्त हो गया ।
एक और जम्बूचरियं महाराष्ट्री प्राकृत में है, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ। इसके कर्ता नाइलगच्छीय गुणपाल हैं, जो संभवतः वे ही हैं जिनके प्राकृत ऋषिदत्ता चरित्र का उल्लेख जैनग्रन्थावली में पाया जाता है, और उसका रचना काल वि० सं० १२६४ अंकित किया गया है। यह जम्बूचरित्र सोलह उद्देशों में पूर्ण हुआ है । मुख्य कथा व अवान्तर कथाएं भी प्रायः वे ही हैं जो पूर्वोक्त कृति में भी अपेक्षाकृत संक्षेप रूप में पाई जाती हैं। पद्मसुन्दर कृत जम्बूचरित अकबर के काल में सं० १६३२ में रचा गया मिला है । ___ गुणचन्द्र सूरि कृत गरविक्कमचरिय यथार्थतः ग्रन्थकार की पूर्वोक्त रचना 'महावीरचरियं' में से उद्धत कर पृथक रूप से संस्कृत छाया सहित प्रकाशित हुआ है (नेमि विज्ञान प्र० मा० २० वि०सं० २००८)। छत्ता नगरी के जितशत्रु राजा के पुत्र नन्दन को उपदेश देते हुए पोट्टिल स्थाविर ने विषयासक्ति में धर्मोपदेश द्वारा प्रवृज्या धारण करने वाले राजा नरसिंह और उसके पुत्र नरवाहनदत्त का चरित्र वर्णन किया । कथा के गद्य और पद्य दोनों भाग रचना की दृष्टि से प्रौढ़ और काव्य गुणों से युक्त हैं ।
इनके अतिरिक्त इसी तकार की अन्य अनेक प्राकृत रचायें उपलब्ध हैं, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुई । इनमें से कुछ के नाम इस तकार हैं:-विजयसिंह कृत भुवनसुन्दरी (१०वीं शती), वर्धमान कृत मनोरमाचरियं (११वीं शती), ऋषिवस्ता चरित (१३वीं शती) प्रद्युम्नचरित, मलयसुन्दरी कथा, नर्मदासुन्दरी कथा, धन्यसुन्दरी कथा, और नरदेव कथा । (देखिये जैन ग्रन्थावली)
प्राकृत कथाकोष
धर्मोपदेश के निमित लघु कथाओं का उपदेश श्रमण-परम्परा में बहुत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। द्वादशांग आगम के गायाधम्मकहाओ में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org