Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग-अपभ्रंश
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मुनिदीक्षा लेने का विचार किया; किन्तु उसकी मां ने उसे रोका । अमृतमति ने दोनों को विष देकर मार डाला। तत्पश्चात् मां-बेटों ने नाना पशु-योनियों में परिभ्रमण किया; जिनमें स्वयं उसके पुत्र जसवइ व व्याभिचारिणी पत्नी ने उनका घात किया (२ सं०) । अनेक पशुयोनियों में दुःख-भोग कर अन्त में वे दोनों जसवइ के पुत्र और पुत्री रूप से उत्पन्न हुए। एक बार जसवइ पाखेट करने वन में गया था, वहां उसे सुदत्त मुनि के दर्शन हुए, और उसने उन पर अपने कुत्ते छोड़े। किन्तु मुनि के प्रभाव से कुत्ते उनके सम्मुख विनीतभाव से नमन करने लगे। एक सेठ ने राजा को मुनि का माहात्म्य समझाया, तब राजा को सम्बोधन हुआ। मुनि को अवधिज्ञानी जान राजा ने उनसे अपने पूर्वभूत माता-पिता व मातामही का वृत्तांत पूछा । मुनि ने उनके भव-भ्रमण का सब वृत्तान्त सुनाकर बतला दिया कि उसका पिता और उसकी मातामहि ही अब अभयरूचि
और अभयमति के रूप में उसके पुत्र-पुत्री हुए हैं (३ सं०) । यह वृत्तान्त सुनकर और सन्सार की विचित्रता एवं असारता को समझकर जसवइ ने दीक्षा ले ली । उसके पुत्र-पुत्रियों को भी अपने पूर्वभवों का स्मरण हो आया; और वे क्षुल्लक के व्रत लेकर सुदत्त मुनि के साथ विहार करते हुए मारिदत्त के राजपुरुषों द्वारा पकड़ कर वहाँ लाये गये। यह वृतान्त सुनकर राजा मारिदत्त उनकी देवी चंडमारी व पुरोहित भैरवानंद आदि सभी को वैराग्य हो गया; और उन्होंने सुदत्त मुनि से दीक्षा ले ली (सं० ४) । इस कथानक को पुष्पदंद ने बड़े काव्य-कौशल क साथ प्रस्तुत किया है। (कारंजा, १६३२)
णायकुमार-चरिउ में पुष्पदंत ने श्रुत-पंचमी कथा के माहात्म्य को प्रगट करने के लिये कामदेव के अवतार नागकुमार का चरित्र ६ सन्धियों में में वर्णन किया है। मगधदेश के कनकपुर नगर में राजा जयंधर और रानी विशालनेत्रा के श्रीधर नामक पुत्र हुआ । पश्चात् राजा ने सौराष्ट्र देश में गिरिनगर की राजकुमारी पृथ्वीदेवी का चित्र देख, और उस पर मोहित हो, उसे भी विवाह लिया (स० १) । यथा समय पृथ्वीदेवी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जो शैशव में जिनमंदिर की वापिका में गिर पड़ा। वहां नागों ने उसकी रक्षा की; और उसीसे उसका नाम नागकुमार रखा गया नागकुमार नाना विद्याएं सीखकरयौवन को प्राप्त हुआ। उस पर मनोहारी और किन्नरी नामक नर्तकियां मोहित हो गई; और उसने उन्हें विवाह लिया। उसकी माता और विमाता में विद्वष बढ़ा; और उसका सौतेला भाई श्रीधर भी उससे द्वैष करके उसे मरवा डालने का प्रयत्न करने लगा। इसीसमय एक मदोन्मत हाथी के आक्रमण से समस्त नगर व्याकुल हो उठा। श्रीधर उसे दमन करने में असफल रहा;
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