Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग-संस्कृत
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नहीं ।
प्रकार सर्वप्रथम इस ग्रंथ में त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित्र विधिवत् एक साथ वर्णित पाया जाता है । उत्तर पुराण के ६८ वें पर्व में राम का चरित्र आया है, जो विमलसूरि कृत पउमचरियं के वर्णन से बहुत बोतों में भिन्न है । उत्तर पुराण के अनुसार राजा दशरथ काशी देश में वाराणसी के राजा थे, और वहीं राम का जन्म रानी सुबाला से तथा लक्ष्मण का जन्म कैकेयी के गर्भ से हुआ था । सीता मंदोदरी के गर्भ से उत्पन्न हुई थी, किन्तु उसे अनिष्टकारिणी जान रावण ने मंजूषा में रख कर मरीचि के द्वारा मिथिला में जमीन के भीतर गड़वा दिया, जहां से वह जनक को प्राप्त हुई । दशरथ ने पीछे अपनी राजधानी अयोध्या में स्थापित कर ली थी । जनक ने यज्ञ में निमंत्रित करके राम के साथ सीता का विवाह कर दिया । राम के बनवास का यहां कोई उल्लेख नहीं । राम अपने पूर्व पुरुषों की भूमि बनारस को देखने के लिये सीता सहित वहां आये, और वहां के चित्रकूट वन से रावण ने सीता का अपहरण किया | यहां सीता के आठ पुत्रों का उल्लेख है, किन्तु उनमें लव-कुश का कहीं नाम लक्ष्मण एक असाध्य रोग से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हुए, तब राम ने उन्हीं के पुत्र पृथ्वीसुन्दर को राजा तथा अपने पुत्र अजितंजय को युवराज बनाकर सीतासहित जिन दीक्षा धारण कर ली । इस प्रकार इस कथा का स्त्रोत पउमचरियं से सर्वथा भिन्न पाया जाता है । इसकी कुछ बातें बौद्ध व वैदिक परम्परा की रामकथाओं से मेल खाती हैं; जैसे पालि की दशरथ जातक में भी दशरथ को वाराणसी का राजा कहा गया है । अद्भुत रामायण के अनुसार भी सीता का जन्म मंदोदरी के गर्भ से हुआ था । किन्तु यह गर्भ उसे रावण की अनुपस्थिति में उत्पन्न होने के कारण, छुपाने के लिये वह विमान में बैठकर कुरूक्षेत्र गई, और उस गर्भ को वहां जमीन में गड़वा दिया। वहीं से वह जनक को प्राप्त हुई । उत्तरपुराण की अन्य विशेष बातों के स्त्रोतों का पता लगाना कठिन है । इस रचना में संभव जिसने महापुरुषों के नाम वैदिक पुराणों के अनुसार ही हैं, और नाना संस्कारों की व्यवस्था पर भी उस परम्परा की छाप स्पष्ट दिखाई देती है । जयधवला की प्रशस्ति में जिनसेन ने अपना बड़ा सुन्दर वर्णन दिया है। उनका कर्ण छेदन ज्ञान की शलाका से हुआ था । वे शरीर से कृश थे, किन्तु तप से नहीं । वे आकार से बहुत सुन्दर नहीं थे, तो भी सरस्वती उनके पीछे पड़ी थीं, जैसे उसे अन्यत्र कहीं आश्रय न मिलता हो । उनका समय निरन्तर ज्ञान की आराधना में व्यतीत होता था, और तत्वदर्शी उन्हें ज्ञान का fus कहते थे । इत्यादि । ( हिन्दी अनुवाद सहित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, से प्रकाशित )
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इसके पश्चात् हेमचन्द्र द्वारा त्रिषष्ठिशलाका-पुरुष- चरित नामक पुराण
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