Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन साहित्य
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उल्लेख किया है,
।
यह रचना १० सधियों
परम्परा में एक प्रत्येक बुद्ध
उस नामका कलचुरि वंशीय राजा व विजयपाल उसका सम-सामयिक चंदेल वंशीय राजा था । तदनुसार इस ग्रन्थ की रचनाकाल १०५० ई० के लगभग सिद्ध होता है । कवि ने जो स्वयम्भू और पुष्पदंत का उससे उनका ई० सन् १६५ के पश्चात् होना निश्चित है में पूर्ण हुई है । कथानायक करकंड जैन व बौद्ध माने गये हैं । वे अंग देश में चंपानगरी के राजा घाड़ीवाहन और रानी पद्मावती के पुत्र थे, किन्तु एक दुष्ट हाथी द्वारा रानी के अपहरण के कारण उनका जन्म दंतीपुर के समीप श्मशान - २ -भूमि में हुआ था । उसका परिपालन व शिक्षण एक मातंग के द्वारा हुआ । दन्तीपुर के राजा के मरने पर दैवयोग से वह वहां का राजा बनाया गया। चंपा से राजा घाड़ीवाहन ने उसके पास अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजा, जिसे ठुकरा कर उसने चंपापुर पर आक्रमण किया । पिता-पुत्र के बीच जब घमासान युद्ध हो रहा था, तब उसकी माता पद्मावती ने प्रकट होकर युद्ध का निवारण और पिता-पुत्र की पहचान कराई । अब करकंडू चंपापुर का राजा बन गया । उसने दक्षिण के चोड, चेर व पांड्य देशों की विजय के लिये यात्रा की । मार्ग में तेरापुर के समीप की पहाड़ी पर एक प्राचीन जैन गुफा का पता लगाया व एक दो नये लयण बनवाये । फिर उन्होंने सिंहल द्वीप तक विजय की, और नाना राजकुमारियों से विवाह किया अंत
शील गुप्त मुनि से धर्म श्रवण कर, तपस्या धारण की, और मोक्ष प्राप्त किया । इस कथानक में अनेक छोटी-छोटी उपकथाएं करकंडु के शिक्षण के लिये मातंग द्वारा सुनाई गई हैं। तीन भवान्तर कथाएं इतनी बड़ी बड़ी हैं कि वे पूर्ण एकएक संधि को घेरे हुए हैं। पांचवीं संधि में तेरापुर की प्राचीन गुफा बनने व पहाड़ी पर जिनमूर्ति के स्थापित किये जाने का वृत्तान्त है । छठी संधि में करकंड की प्रिय पत्नी मदनावली का एक दुष्ट हाथी द्वारा अपहरण होने पर उनकी वियोग-पौड़ा के निवारणार्थं राजा नरवाहनदत्त का आख्यान कहा गया है, एवं आठवीं संधि में करकंड की पत्नी रतिवेगा को उसके पतिवियोग में संबोधन के लिये देवी द्वारा अरिदमन और रत्नलेखा के वियोग और पुनिर्मिलन का आख्यान सुनाया गया है । ग्रन्थ में श्मशान का, गंगानदी का प्राचीन जिनमूर्ति के भूमि से निकलने का एवं रतिवेगा के विलाप आदि का वर्णन बहुत सुन्दर बन पड़ा है । ( कारंजा, १९३४)
पउमसिरि-चरिउ (पद्यश्री चरित) के कर्ता धाहिल ने अपने विषय में इतना बतलाया है कि उनके पिता का नाम पार्श्व व माता का महासती सूराई (सूरादेवी ?) था, और वे शिशुपाल काव्य के कर्ता माघ के वंश में उत्पन्न हुए थे । समय का निश्चय नहीं, किन्तु इस कृति की जो एक प्राचीन प्रति वि० सं०
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