Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग-प्राकृत
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जाती है । जिनेश्वर सूरि कृत कथाकोष-प्रकरण (वि० सं० ११०८) में ३० गाथाओं के आधार से लगभग ४० कथाएँ वर्णित हैं, जिनमें सरल भाषा द्वारा जिनपूजा, सुपात्रदान आदि के सुफल बतलाये गये हैं, और साथ ही राजनीति समाज आदि का चित्रण भी किया गया है। जिनेश्वर कृत ६० गाथात्मक उपदेशरत्नकोष और उस पर २५०० श्लोक प्रमाण वृत्ति देवभद्रकृत भी मिलती है। देवेन्द्रगणिकृत आख्यान मणिकोष (११ वीं शती), मलधारी हेमचन्द्र कृत भवभावना और उपदेशमाला प्रकरण (१२ वीं शती) लघु कथाओं के इसी प्रकार के संग्रह हैं। सोमप्रभकृत कुमारपाल-प्रतिबोध (वि० सं० १२४१) में प्राकृत के अतिरिक्त कुछ आख्यान संस्कृत व अपभ्रंश में भी रचे गये हैं। इसमें कुल पांच प्रस्ताव हैं जिनके द्वारा ग्रन्थकार के अनुसार आचार्य हेमचन्द्र ने राजा कुमारपाल को जैन धर्मावलम्बी बनाया। पांचों प्रस्तावों में सब मिलाकर ५४ कथानक हैं, जो बहुत सुन्दर और साहित्यिक हैं। मानतुंग सूरि कृत जयन्ती-प्रकरण की रचना भगवती सूत्र के १२ वें शतक के दूसरे उद्देश के आधार से हुई हैं । तदनुसार श्रमणोपासिका जयन्ती कौशाम्बी के राजा शतानीक की बहिन थी। उसने तीर्थंकर महावीर से धर्मसम्बन्धी नाना प्रश्न किये थे। इसी आधार पर कर्ता ने २८ गाथायें रची हैं, और उनके शिष्य मलयप्रभ सूरि ने वि० सं० १२६० के लगभग उस पर वृत्ति लिखी, जिसमें अनेक कथायें वर्णित है । उज्जैनी का राजा प्रद्योत राजा चेटक की पुत्री व राजा शतानीक की पत्नी मृगावती पर आसक्त था। इस पर तीर्थंकर महावीर ने उसे परस्त्रीत्याग का उपदेश दिया। अन्य कथायें शील, सुपात्रदान व तप आदि गुणों का फल दिखलाने वाली हैं, जिनमें ऋषभदेव, भरत व बाहुबली का वृत्तांत भी आया है।
गुणचन्द्र कृत कथारत्नकोष (१२वीं शती) में पचास कथानक हैं, जिनमें कहीं कहीं अपभ्रंश का उपयोग किया गया है। अन्य कथाकोषों में चन्द्रप्रभ महत्तर कृत विजयचन्द्र केवली (११वीं शती) जिनचन्द्रसूरि कृत संवेग-रंगशाला और आसाढ़ कृत विवेक-मंजरी एवं उपदेश-कंदली (१२ वीं शती), मुनिसुन्दरकृत उपदेश-रत्नाकर (१३वीं शती), सोमचन्द्र कृत कथामहोदधि और शुभवर्घनगणि कृत वर्धमान देशना तथा दशश्रावक-चरित्र (१५ वीं शती) उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त स्फुट अनेक लघु कथाएँ हैं, जिनमें विशेष व्रतों के द्वारा विशिष्ट फल प्राप्त करने वाले पुरुष स्त्रियों के चरित्र वर्णित हैं; जैसे अंजना सुन्दरी कथा, शीलवती, सर्वाग-सुन्दरी आदि कथाएँ। इस प्रकार की कोई २०-२५ प्राकृत कथाओं का उल्लेख जैन-ग्रन्थावली में किया गया है ।
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