Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग-प्राकृत
१४७ की राजकन्या रतिसुन्दरी से भी विवाह किया । तत्पश्चात् अनेक सुख भोगकर उसने दीक्षा धारण कर ली, और मरकर स्वर्ग प्राप्त किया । गद्य और पद्य दोनों में भाषा सुपरिमार्जित पाई जाती है। और यत्र तत्र काव्य गुण भी दिखाई देते हैं।
एक और जिनदत्ताख्यान नामक रचना पूर्वोक्त ग्रन्थ के साथ ही प्रकाशित हुई है (बम्बई, १९५३); जिसमें कर्ता का नाम नहीं मिलता । कथानक पूर्वाक्त प्रकार ही है। किन्तु उसकी अपेक्षा कुछ संक्षिप्त है। पूर्वोक्त कृति से यह प्राचीन हो, तो आश्चर्य नहीं । इसमें जिनदत्त का पर्व भव अन्त में वर्णित है। प्रारम्भ में नहीं। इसकी हस्तलिखित प्रति में उसके चित्रकूट में मणिभद्र यति द्वारा सं० ११८६ में लिखे जाने का उल्लेख है।
रयणसेहरीकहा के कर्ता जिनहर्षगणि ने स्वयं कहा है कि वे जयचन्द्र मुनि के शिष्य थे और उन्होंने यह कथा चित्रकूट नगर में लिखी । ग्रन्थ की पाटन भंडार की हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५१२ की है; अतएव रचना उससे पूर्व की होनी निश्चित है। यह कथा सांवत्सरिक, चातुर्मासिक एवं चतुर्दशी, अष्टमी आदि पर्वानुष्ठान के दृष्टान्त रूप लिखी गई है। रतनपुर का राजा किन्नरों से रलावती के रूप की प्रशंसा सुनकर उसपर मोहित हो गया । इस सुन्दरी का पता लगाने उनका मंत्री निकला । एक सघन वन में पहुंचकर उसकी एक यक्षकन्या से भेंट हुई, जिसके निर्देश से वह एक जलते हुए धूपकंड में कूदकर पाताल में पहुंचा और उस यक्ष-कन्या को विवाहा । यक्ष ने रत्नावली का पता बतलाया कि वह सिंहल के राजा जयसिंह की कन्या है। यक्ष ने उसे अपने विद्याबल से सिंहल में पहुंचा भी दिया। वहां वह योगिनी के वेष में रत्नावली से मिला । रत्नावली ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जब उसे अपना पूर्व मग-जन्म का पति मिलेगा, तभी वह उससे विवाह करेगी। योगिनी ने भविष्य का विचार कर बतला दिया कि उसका वही पति उसे शीघ्र ही कामदेव के मंदिर में घ तक्रीड़ा करता हुआ मिलेगा। इस प्रकार रत्नावली को तैयार कर वह उसी यक्ष-विद्या द्वारा अपने राजा के पास पहुंचा, और उसे साथ लाकर कामदेव के मंदिर में सिंहल राजकन्या से उसकी भेंट करा दी । दोनों में विवाह हो गया । एक बार जब वे दोनों गीत काव्य कथादि विनोद में आसक्त थे, तब एक सूआ राजा के हाथ पर आ बैठा, और एक शुकी रानी के हाथ पर । सूए की वाणी से राजा ने जान लिया कि वह कोई विशेष धामिक प्राणी है । विद्धत्तापूर्ण वार्तालाप करते हुए शुक और शुकी दोनों मूच्छित होकर मृत्यु को प्राप्त हुए। एक महाज्ञानी मुनि ने राजा को बतलाया कि वे उसके पूर्व पुरुष थे; जो अपना व्रत खडित करने के पाप से पक्षियोनि उत्पन्न हुए थे । उस पाप
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