Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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चरणानुयोग-स्तोत्र
समन्तभद्रकृत दूसरी स्तोत्रपरक रचना स्तुतिविद्या है, जिसके जिनशतक व जिनशतलंकार आदि नाम भी पाये जाते हैं । इसमें कवि का काव्य- कौशल अति उत्कृष्ट सीमा पर पहुंचा दिखाई देता है । इसमें ११६ पद्य हैं, जो लंकारों व चित्रकाव्यों द्वारा कहीं कहीं इतने जटिल हो गये हैं कि बिना टीका के उनको भले प्रकार समझना कठिन है । इसपर वसुनंदि कृत एक मात्र टीका पाई जाती है। इसी कोटि का पूज्यपाद देवनंदि (छठी शती) कृत अलंकार प्रचुर सिद्धप्रिय स्तोत्र है, जो २६ पद्यों में पूरा हुआ है । इसमें चौबीस तीर्थकरों की स्तुति की गई है, व सिद्धप्रिय शब्द से प्रारम्भ होने के कारण उक्त नाम से प्रसिद्ध है ।
संस्कृत में मानतुं गाचार्य ( लगभग ५ वीं ६ ठवीं शती) कृत 'भक्तामर स्तोत्र' बहुत ही लोकप्रिय और सुप्रचलित एवम् प्रायः प्रत्येक जैन की जिह्वा पर आरूढ़ पाया जाता है । दिग० परम्परानुसार इसमें ४८ तथा श्वेताम्बर परम्परा में ५४ पद्य पाये जाते हैं । स्तोत्र की रचना सिंहोन्नता छंद में हुई हैं । इसमें स्वयं कर्ता के अनुसार प्रथम जिनेन्द्र अर्थात् ऋषभनाथ की स्तुति की गई है । तथापि समस्त रचना ऐसी है कि वह किसी भी तीर्थंकर के लिये लागू हो सकती है । प्रत्येक पद्य में बड़े सुन्दर उपमा, रूपक आदि अलंकारों का समावेश है । हे भगवन् प्रप एक अद्भुत जगत् प्रकाशी दीपक हैं, जिसमें न तेल है, न बाती और न धूम; एवं जहां पर्वतों को हिलादेने वाले वायु के झोंके भी पहुंच नहीं सकते, तथापि जिससे जगत् भर में प्रकाश फैलता है । हे मुनीन्द्र, आपकी महिमा सूर्य से भी बढ़कर है, क्योंकि आप न कभी अस्त होते, न राहुगम्य हैं, न आपका महान् प्रभाव मेघों से निरुद्ध होता, एवं एक साथ समस्त लोकों का स्वरूप सुस्पष्ट करते हैं । भगवन् श्रपही बुद्ध हैं, क्योंकि आपकी बुद्धि व बोध की विबुध जन अर्चना करते हैं । आप ही शंकर है, क्योंकि आप भुवनत्रय का शम् अर्थात् कल्याण करते है । और आप ही विधाता ब्रह्मा हैं, क्योंकि आपने शिव मार्ग (मोक्ष मार्ग) की विधि का विधान किया है, इत्यादि । इसका सम्पादन व जर्मन भाषा में अनुवाद डा० जैकोबी ने किया है । इस स्तोत्र के आधार से बड़ा विशाल साहित्य निर्माण हुआ है । कोई २०, २५ तो टीकाएं लिखी गई हैं एवं भक्तामर स्तोत्र कथा व चरित्र, छाया स्तवन, पंचांग विधि पादपूर्ति स्तवन, पूजा, माहात्म्य, व्रतोद्यापन आदि रचनाएँ भी २०, २५ से कम नहीं हैं । प्राकृत में भी मानतुरंग कृत भयहर स्तोत्र पार्श्वनाथ की स्तुति में रचा गया पाया जाता है ।
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भक्तामर के ही जोड़ का और उसी छंद व शैली में, तथा उसी के समान लोकप्रिय दूसरी रचना कल्याण मंदिर स्तोत्र है । उसमें ४४ पद्य हैं ।
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