________________
है, इस खेल में तुम भी भागीदार हो जाओ। कर्ता न रहो। जो परमात्मा कराये, होने दो।
झेन फकीर कहते हैं जब भूख लगे, भोजन कर लो, जब नींद आये तब सो जाओ। जैसा होता हो उसके साथ बहे चलो। तैसे भी मत। नदी की धार में बहो। तुमने कभी एक मजेदार बात देखी है? जिंदा आदमी डूब जाता नदी में और मुर्दा आदमी तैरने लगता है। मुर्दा नदी के ऊपर आ जाता है और जिंदा आदमी डुबकी खा जाता है। मुर्दा आदमी को जरूर कोई राज मालूम है जो जिंदा को मालूम नहीं। मुर्दा को एक राज मालूम है कि वह कोई चेष्टा नहीं करता। चेष्टा कर ही नहीं सकता; मुर्दा है। जब चेष्टा नहीं करता तो नदी भी उसे अपने हाथों में ले लेती है। तुम चेष्टा करते हो उसी में डूब जाते
हो।
और
तैरने की कला का कुल इतना ही राज है कि जिस दिन तुम्हें पता चल गया कि नदी नहीं डुबाती, तुम अपनी चेष्टा से डूबते हो। तुम धीरे- धीरे छोड़ते गये। तब तो तुम नदी की छाती पर तैर सकते हो। पड़े रहो! नदी नहीं डुबाती। नदी ने कभी किसी को नहीं डुबाया है। लोग अपनी ही मेहनत से डूब गये हैं।
___यह विराट किसी को डुबाने में उत्सुक नहीं है। लोग अपनी मेहनत से डूब जाते हैं। लोग अपने गले में अपनी फांसी खुद लगा लेते हैं। यहां कोई तुम्हें फांसी देने को उत्सुक नहीं है। यह अस्तित्व अपूर्व रस से भरा है। और यह अस्तित्व अपूर्व उत्सव से भरा है। तुम नाच सकते हो। तुम्हारे पैर में जंजीरें नहीं हैं। अस्तित्व ने तुम्हारे पैर में अर डाले हैं, लेकिन तुम जंजीरें बना बैठे हो। तुम यह बात भूल ही गये हो कि अस्तित्व के साथ एकरस हुआ जा सकता है।
संन्यास का ठीक-ठीक यही अर्थ है जो व्यक्ति स्वस्फरणा से जीने लगा। जो अपने भीतर से जीने लगा। जो अब बुद्धि से योजना नहीं करता। जो होता है, होने देता है। जैसा होता है वैसा होने देता है। अकर्मण्य नहीं हो गया है, कर्म विराट होता है अब भी, लेकिन अब कर्म के ऊपर अपनी कोई मालकियत नहीं रही। अब अपने कर्म पर कोई दावा नहीं रहा। जो गैरदावेदार हो गया है वही संन्यासी
अलक्ष्यस्फुरण: शुद्धः स्वभावेनैव शाम्यति।
और ऐसा व्यक्ति शुद्ध हो जाता, स्वभाव से ही शांत हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को शांत होने के लिए कोई भी योग, जप-तप नहीं करना पड़ता और ऐसे व्यक्ति को शुद्ध होने के लिए कोई भी आयोजना नहीं करनी पड़ती।
तो प्रपंच का अर्थ हुआ स्वम्नजाल मन का खेल, विचार-प्रक्षेपण, कामना- आरोपण, जैसा नहीं है वैसा देख लेना, जैसी इच्छा है वैसा देख लेना। और प्रपंच से बाहर होने का मार्ग हुआ
अलक्ष्यस्फुरण शुद्धः
जैसा है उसके साथ राजी हो जाना, उसके साथ बहना। नदी की धार से लड़ना नहीं। नदी की धार के विपरीत न जाना। नदी की धार के साथ जाना। यह जो अस्तित्व की विराट धार जा रही है, इसके साथ जाना अलक्ष्यस्फरणा।