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आगम-सम्पादन की यात्रा
१. पारिभाषिक (विशेष) शब्द-संग्रह। २. एक विषय के शब्दों का वर्गीकरण । ३. विषयों का वर्गीकरण।
एक विचार सामने आया कि उद्धरण-स्थलों के सभी प्रमाण देने से कोश का कलेवर बहुत अधिक बढ़ जाएगा। पर हमें लगा कि यह वृद्धि अन्वेषण की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। इन सभी दृष्टियों को आधार मानकर कोश-निर्माण की रेखाएं सुस्थिर की गईं।
महाराष्ट्र की यात्रा चल रही थी। धुलिया में आचार्यश्री ने मध्य-भारत की यात्रा का निर्णय दे दिया। चतुर्मास में एक महीना बाकी था। मध्य-भारत की यात्रा प्रारंभ हुई। मह होते हुए इन्दौर आगमन हुआ। आचार्यश्री ने उज्जैन में चतुर्मास बिताने का निश्चय कर डाला। लोगों को आश्चर्य हुआ। अच्छेअच्छे लोगों ने कहा-यह क्या? आचार्यश्री इन्दौर शहर को छोड़ कर उज्जैन जा रहे हैं। ऐसा निर्णय क्यों हुआ? कुछ दिनों तक निर्णय पर पुनः विचार करने की प्रार्थनाओं का तांता लगा रहा।
आचार्यश्री जनता की मांग का औचित्य समझते थे, पर निर्णय के पीछे भी बड़ा औचित्य था, जो उस समय लोगों की समझ से परे था। आचार्यश्री को जैनागम-शोध की योजना को कार्यरूप देना था। इन्दौर में कार्य-व्यस्तता के कारण समय की अल्पता निश्चित थी। उज्जैन में यह बात नहीं थी। आचार्यश्री देवास होते हुए उज्जैन पधारे।
चतुर्मास प्रारंभ हआ। शोध-कार्य के लिए पुस्तकें जुटने लगीं। वहां के अनेक पुस्तकालयों से हमने पुस्तकें उपलब्ध की। सामग्री जुट गई। आचार्यश्री ने कहा-'सबसे पहले हमें बत्तीस आगमों के शब्दों का 'अनुक्रम' तैयार करना है।' आचार्यश्री ने इस कार्य के नियोजन के लिए मुनिश्री नथमलजी को आदेश दिया। मुनिश्री ने एक सुनियोजित रूपरेखा आचार्यश्री के समक्ष रखी और तदनुरूप कार्य प्रारंभ हो गया।
इसी बीच दूर-दूर से कार्य-निर्देशन की अज्ञात ध्वनि गूंजने लगी। कार्य को गति देने में यह भी एक शुभ संकेत था। आचार्यश्री ने यथायोग्य निर्देश दिए और बहिर्विहारी श्रमण भी इस कार्य में संलग्न हो गए।
वि. सं. २०१२ का चतुर्मास उज्जैन में था । उस वर्ष भाद्रपद दो थे।