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आगम-सम्पादन का प्रारंभिक इतिहास
२. मुनि रत्नचन्द्रजी का अधमागधी शब्दकोश । ३. अल्पपरिचित जैनागम शब्दकोश। ४. पंडित हरगोविन्ददास का पाइयसद्दमहण्णवो।
हमने इनको देखा। इनको देखकर नए शब्दकोश का निर्माण अनावश्यक लगने लगा।
मुनिश्री नथमलजी ने अपने ये विचार आचार्यश्री के सामने रखे। चिन्तन चला। सोचा जाने लगा कि क्या कोश-निर्माण के विचार को छोड़ दिया जाए या उसे नया रूप दिया जाए? कई दिनों तक विचार-मंथन होता रहा। आखिर यह निश्चय हुआ कि कोश-निर्माण का कार्य स्थगित न किया जाए। उसमें कुछ विशेषताओं को जोड़कर उसकी उपयोगिता को बढ़ा दिया जाए। यह विचार स्थिर हुआ। स्थिरता का संभाव्य रूप है
१. पहले बने शब्दकोशों में उद्धरण-स्थलों के एक, दो या कुछेक प्रमाण हैं। इस शब्दकोश में प्रत्येक शब्द के सभी प्रमाण रहेंगे। एक शब्द आगमों में जितने स्थलों में प्रयुक्त हुआ है, उसके उतने ही उद्धरण-स्थलों का निर्देश रहेगा।
२. प्रत्येक सूत्र का शब्दकोश तत्-तत् आगम के साथ रहेगा। प्रत्येक शब्द की संस्कृत-छाया भी रहेगी। इस स्वतंत्र शब्दकोश में वे सभी शब्द नहीं लिए जाएंगे। उसमें पारिभाषिक या विशेष शब्द ही लिए जाएंगे।
३. यह कोश कई वर्गों, सूत्रों और सूक्तों में विभक्त होगा। उनमें एक वर्ग पारिभाषिक या विशेष शब्दों का रहेगा। शेष शब्दों का विषयानुपात से वर्गीकरण किया जाएगा। इस प्रकार एक विषय के शब्द एक ही वर्ग में समन्वित रूप से मिल सकेंगे। उनके आधार पर उनके प्रकरण भी सरलतापूर्वक खोजे जा सकेंगे।
४. इस शब्दकोश का एक विभाग विषयों के वर्गीकरण का होगा। यह शब्दपरक न होकर अर्थपरक होगा। आगमों में जहां कहीं भी अहिंसा का प्रकरण है, उसका प्रमाण-निर्देश या आधार-स्थलों का सूचन अहिंसा सूक्त में मिल जाएगा। अहिंसा शब्द का प्रयोग हआ है या नहीं, इसकी अपेक्षा नहीं होगी, इनमें भावना का ही प्राधान्य होगा। इस प्रकार इस कोश के तीन प्रमुख भाग होंगे