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आगम-सम्पादन की यात्रा
२. आगम-संपादन की घोषणा वि. सं. २०११, चैत्र शुक्ला नवमी का पावन दिन। आचार्यश्री तुलसी अपने संघ के साथ दौलताबाद से विहार कर औरंगाबाद (महाराष्ट्रखानदेश) पधारे। नागरिकों ने आपका हार्दिक अभिनन्दन किया।
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर चतुर्विध धर्मसंघ की उपस्थिति में आचार्यश्री ने घोषणा की-'इन आगामी पांच वर्षों में जैनागम शोधकार्य हमारे अनेक लक्ष्यों में एक प्रमुख लक्ष्य बना रहेगा। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए सभी साधु-साध्वियों को एकजुट होकर कार्य करना है। ___ उपस्थित परिषद् ने घोषणा का हार्दिक स्वागत किया। अनेक साधु इसमें यथायोग्य शक्तिदान और बुद्धिदान देने के लिए उत्कंठित हुए। साध्वियों ने भी इसमें यथायोग्य कार्य करने का संकल्प किया।
३. आगम-संपादन का प्रारंभिक इतिहास आचार्यश्री तुलसी एक महान् परिव्राजक हैं। 'चरैवेति चरैवेति' उनकी जीवनचर्या है। औरंगाबाद से विहार कर आचार्यश्री नसीराबाद, जलगांव होते हुए ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को ‘फागणा' पधारे। यह गांव धुलिया से दो कोस की दूरी पर है। वहां श्रीचंदजी रामपुरिया दर्शन करने आए। जैनागमसंपादन की चर्चा चली। कार्य का प्रारंभ कहां से किया जाए, यह विचार सामने आया। अनेक विचार सामने थे। श्रीचंदजी रामपुरिया ने सबसे पहले जैनागम-शब्दकोश तैयार करने का सुझाव रखा। आचार्यश्री को यह उचित लगा। आगमों का हिन्दी अनुवाद और शब्दकोश ये दो कार्य प्रारंभणीय थे। इन दोनों कार्यों के लिए हमने काफी सामग्री एकत्रित की। एक समस्या हमारे सामने उपस्थित हुई। कोश-निर्माण के विषय में कई विकल्प खड़े हुए। मन में विचार आया कि जब पूर्व में अनेक शब्दकोश विद्यमान हैं तब नए शब्दकोश के निर्माण के लिए समय और शक्ति को व्यर्थ क्यों लगाया जाए? हमारे सामने चार शब्दकोश विद्यमान थे
१. श्रीराजेन्द्रसूरि का अभिधान राजेन्द्रकोश ।