Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे न्यपि द्रव्याणि आहरन्तीति 'जाई गंधओ मुभिगंधाई आहारेति ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाई आहारेंति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई आहारैति' यानि गन्धतः सुरभिगंधानि तानि किमेकगुणसुरभिगन्धानि आहरन्ति यावत् अनन्तगुणसुरभिगन्धानि आहरन्ति अत्र यावत्पदेन एकगुणसुरभिगन्धादारभ्य असंख्यातगुणसुरभिगन्धपर्यन्तस्य संग्रहो भवति, इति प्रश्नः, भगवानाह--'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा ! हे गौतम ? एगगुणसुब्भिगंधाई पि आहारेति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई पि आहारेंति' एकगुणसुरभिगन्धान्यपि आहरन्ति यावदनन्तगुणसुरभिगन्धान्यपि द्रव्याणि आहरन्ति ते सूक्ष्मपृथिवीकायिका जीवाः, अत्र यावत्पदेन द्विगुणसुरभिगन्धादारभ्य असंख्यातगुणसुरभिगन्धान्तस्य संग्रहो भवतीति । एवं दुब्भिगंधाई पि' एवं सुरभिगन्धप्रकरणे यथा कथितं तथैव दुरभिगन्धमाश्रित्यापि वक्तव्यम् , तथाहि-यदि गन्धतो गंधओ सुब्भिगंधाई आहारेंति, ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाइं आहारेंति, जाव अणंगुणसुब्मिगंधाई आहारेंति, " यदि वे गंध की अपेक्षा सुरभिगंध युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं तो क्या वे एकगुण सुरभिगंध से युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं या यावत् अनन्त गुण सुरभि गंध से युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं ? यहाँ यावत्पद से एकगुण सुरभिगन्ध से लेकर असंख्यातगुण सुरभिगन्ध से युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं । ऐसा पाठ गृहीत हुआ है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं --- "गोयमा! एग गुणसुब्भिगंधाइं पि आहारेंति, जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई पि आहारेंति," "हे गौतम ! वे एकगुण सुरभिगंध वाले द्रव्यों का भी आहार करते हैं और यावत् अनन्त गुण सुरभिगंधवाले द्रव्यों का भी आहार ग्रहण करते हैं । यहाँ यावत्पद से "द्विगुण सुरभिगंध से लेकर असंख्यातगुण सुरभिगंध से युक्त द्रव्यों का आहार ग्रहण करते हैं । ऐसा पाठ संगृहीत हुआ है “ एवं दुभिगंधाई पि" सुरभिगंध के प्रकरण मा.२ ४२ छ, गौतम स्वामीना प्रश्न "जइ गंधओ सुब्भिगंधाइ आहारेंति, ताइं कि एगगुणसुभिगंधाई आहारेंति, जाव अणंतगुणसुबिभगंधाइ आहारेंति" तमा धनी અપેક્ષાએ સુરભિગધવાળાં દ્રવ્યોને આહાર કરે છે તે શું તેઓ એક ગણી ગંધવાળા સુરભિગંધવાળાં દ્રવ્યોને આહાર કરે છે, કે બેથી લઈને દસ ગણી, સંખ્યાત ગણી, અસંખ્યાત ગણી, કે અનંત ગણી સુરભિગંધવાળાં દ્રવ્યને આહાર કરે છે ?
महावीर प्रभुना उत्त२-"गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाई पि आहारति, जाव अणंतगुण सुभिगंधाई पि आहारति" गौतम तेस से गशी सुरमियाजा द्रव्यान! ५५॥ આહાર કરે છે, બેથી લઈને દસ ગણી સુરભિગંધવાળાં દ્રવ્યોને પણ આહાર કરે છે, સંખ્યાત ગણું સુરભિગંધવાળાં દ્રવ્યને પણ આહાર કરે છે, અસંખ્યાત ગણી સુરભિવાળાં દ્રવ્યને ५५ माहा२ ४२ छ भने मनात गणी सुरभिवाण द्रव्योनो ५५४ मा डा२ ४२ छे. “एवं दुब्भिगंधाई पि" मे थन Hिuni द्रव्याना विष ५५५ सम से मेटले
જીવાભિગમસૂત્રા