Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____ जीवाभिगमसूत्रे रन्ति तानि किमेकगुणकालानि आहरन्ति यावदनन्तगुणकालानि आहरन्ति, अत्र यावत्पदेन द्वित्राधारभ्यासंख्यातगुणकानीत्येतत्पर्यन्तग्रहणं भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई पि आहारेति' एकगुणकालान्यपि आहरेन्ति यावदनन्तगुणकालान्यपि आहारन्ति अत्र यावत्पदेन द्विगुणकालादारभ्य असंख्यातगुणकालान्तग्रहणं भवति इति । एवं जाव सुकिल्लाइंपि' एवं यावत् शुक्लान्यपि एकगुणनीलान्यपि आहरन्ति, एवमनन्तगुणनीलान्यपि आहरन्ति, एकगुणरक्तान्यपि आहरन्ति, यावदनन्तगुणरक्तान्यपि आहरन्ति, एकगुणपीतान्यपि आहरन्ति यावदनन्तगुणपीतावर्ण की अपेक्षा कृष्ण वर्ण वाले द्रव्य का आहार करते हैं तो क्या वे एक गुण वाले-एक गुने काल वर्ण विशिष्ट द्रव्यों का आहार करते हैं ? या यावत् अनन्तगुणित काल वर्ण विशिष्ट द्रव्यों का आहार करते हैं ? यहाँ यावत् पद से "द्वित्रि आदि गुणित कृष्ण वर्ण वाले द्रव्यों से लेकर असंख्यात गुणित कृष्ण वर्ण वाले द्रव्यों का आहार करते हैं" ऐसा पाठ गृहीत हुआ है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं ? " गोयमा! एग गुणकालाई पि आहारति जाव अणंतगुणकालाई पि आहारेंति" हे गौतम । वे एक गुणवाले कृष्णवर्णविशिष्ट द्रव्यों का भी आहार करते हैं यावत् अनंत गुणित कृष्ण वर्ण विशिष्ट द्रव्यों का भी आहार ग्रहण करते हैं । यहाँ यावत् पद से "द्विगुण काल से लेकर असंख्यात गुण काल विशिष्ट द्रव्यों का भी वे आहार ग्रहण करते हैं" ऐसा पाठ समझाया गया है “एवं जाव सुक्किल्लाइं" इसी प्रकार से एक गुण नील से लेकर यावत् अनन्तगुण नील से युक्त द्रव्यों का भी आहार ग्रहण करते हैं एक गुणरक्त. वर्ण से लेकर यावत् अनन्तगुण रक्त से युक्त द्रों का भी वे आहार ग्रहण करते हैं एक गुण पीत से लेकर यावत् अनन्त गुण पीत से युक्त द्रव्यों का भी वे आहार करते हैं, और एक અપેક્ષાએ કાળા વર્ણવાળાં દ્રવ્યોનો આહાર કરે છે, તે શું તેઓ એક ગણું કાળાવણુળાં દ્રવ્યને આહાર કરે છે, કે બેથી લઈને દશ ગણુ કાળા વર્ણવાળાં દ્રવ્યને આહાર કરે છે, સંખ્યાત, અસંખ્યાત અને અનંતગણ કાળા વર્ણવાળાં દ્રવ્યોને આહાર કરે છે ?
महावीर प्रभुन। उत्तर-"गोयमा ! एगगुणकालाई पि आहारेंति, जाव अणंतगुण कालई पि आहारैति" गौतम ! तेथे : गावाणां द्रव्याने। ५९ माहार કરે છે, બેથી લઈને દસ ગણું, સંખ્યાત ગણું. અસંખ્યાત ગણું અને અનંત ગણા કાળાવણવાળાં દ્રવ્યોને પણ આહાર કરે છે. આ રીતે અહીં એ વાત સ્પષ્ટ કરવામાં આવી छ , तमो गमे तदा ॥ ॥f qii द्रव्याने। माहा२ अ५ ४२ छे. “एवं जाव सुक्किल्लाई' से प्रमाणे तेस। ये थी साई ने सनातनीस द्रव्योन। ५९ माहार ગ્રહણ કરે છે, એ જ પ્રમાણે એક ગણા રાતાવર્ણવાળા દ્રવ્યોથી લઈને અનંત ગણ રાતાવર્ણ
જીવાભિગમસૂત્ર