Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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_जीवाभिगमसूत्रे भदन्त ! 'केवइयं कालं अंतरं होइ' कियन्तं कालमन्तरं भवति अकर्मभूमिकस्त्री भूत्वा तावत् स्त्रीत्वात् भ्रष्टा सती पुनः कियता कालेनाकर्मभूमिकस्त्री भवतीति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई' जन्म प्रतीत्य-जन्मापेक्षया जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि तादृशस्त्रीत्वस्यान्तरं भवतीति अन्तर्मुहूर्त्ताधिकदशवर्षसहस्रपर्यन्तमन्तरं केन प्रकारेण भवतीति चेदत्रोच्यते इह काचिदकर्मभूमिका स्त्री मृत्वा जघन्यस्थितिकदेवेषु समुत्पन्ना, तत्र देवेषु दशवर्षसहस्राणि आयुः परिपाल्य तादृशायुषः क्षये देवभवात् च्युत्वा कर्मभूमिषु मनुष्यपुरुषत्वेन मनुष्यस्त्रीत्वेन वोत्पद्यते देवेभ्योऽनन्तरमकर्मभूमिपूत्पादासंभवात् , तत्रान्तर्मुहूर्तेन मृत्वा पुनरपि अकर्म
मिक मनुष्य स्त्री अपनी अकर्म भूमिक स्त्री पर्याय को छोड़कर यदि पुनः वह अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्री की पर्यायवाली होवे तो इसमें कितने कालका अन्तर होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- "गोयमा ? जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुत्तममहियाइं" हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा लेकर वह जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक दश हजार वर्ष का है वाद पुनः वहीं की स्त्री हो सकती है और "उक्कोसेणं वण्णस्सइकालो"उत्कृष्ट से वनस्पति काल का है उसके बाद पुनः वहां की वह स्त्री हो सकती है जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजारवर्ष का अन्तर इस प्रकार से आता है जैसे-कोई अकर्म भूमिक स्त्री मरी और मरकर वह जघन्य से दस हजार वर्ष की स्थिति वाले देवो में उत्पन्न हो गई वहां वह दस हजार वर्ष की आयु को भोगकर वहां से च्यवकर और जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले कर्मभूमिके मनुष्य पुरुष में अथवा मनुष्य स्त्री में वह उत्पन्न हो गई क्योंकि देवगति से च्यव कर जीव सीधा अकर्म भूमि में उत्पन्न नहीं होता है वहां वह अन्तर्मुहूर्त की आयु भोगकर फिर वह अकर्म भूमि भोगભગવન અકર્મભૂમિ જ મનુષ્ય સ્ત્રી પોતાના સ્ત્રી પર્યાયને છોડીને જે ફરીથી તે અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રીના પર્યાયને પ્રાપ્ત કરે તે તેમાં કેટલાકાળનું અંતર કહ્યું છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં
गीतभ स्वामीन ४ छ ?----"गोयमा! जम्मणं पडुच जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमहत्तमभहियाई" हे गौतम! सन्मनी अपेक्षाथी ते धन्यथा मे सतत अघि २ वषनु छे. ते पछी थी त्यांनी सी / श छे. भने “उक्कोसेणं वणस्सइकालो" Bथा वनस्पति डर छे. ते ५छी शथी ते स्त्री त्यांनी श्री सनी જાય છે. જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્ત અધિક દસ હજાર વર્ષનું અંતર આ રીતે આવે છે.-જેમ કે કેઈ અકર્મભૂમિની સ્ત્રી મરીહોય અને મરીને તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા દેમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય ત્યાં તે દસ હજાર વર્ષના આયુષ્યને ભેગવી ને ત્યાંથી આવીને જ ઘન્યથી એક અંતમુહૂર્તની સ્થિતિ વાળા કર્મભૂમિના મનુષ્ય પુરૂષમાં અથવા મનુષ્ય સ્ત્રી માં તે ઉત્પન્ન થઈ જાય, કેમકે-દેવગતિથી ચવીને જીવ સીધે અકર્મભૂમિમાં ઉત્પન્ન થતું નથી. ત્યાં તે અંતર્મુહૂર્તનું આયુષ્ય ભોગવીને તે પછી તે અકર્મભૂમિ-ભંગભૂમિમાં સ્ત્રી
જીવાભિગમસૂત્રા