Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 581
________________ जीवाभिगमसूत्रे टीका – 'एते सिणं भंते' एतेषाम्-अग्रे वक्ष्यमाणानां खलु भदन्त ! 'णेरइयणपुंसगाणं' नैरयिक नपुंसकानाम् —तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' तिर्यग्योनिकनपुंसकानाम्, 'मणुस्सणपुंसगाणय' मनुष्यनपुंसकानां च सामान्यानां नारकतिर्यङ्मनुष्यनपुंसकानाम् 'कयरे कयरे हिंतो' कतरे कतरेभ्यः 'जाव विसेसाहियावा' यावद्विशेषाधिका वा यावत्पदेन अल्पा वा बहुका वा तुल्या वेत्येषां संग्रहो भवति, तथा च-हे भदन्त ! सामान्यतो नारकतिर्यङ्मनुष्यनपुंसकेषु मध्ये कस्यापेक्षया कस्याल्पत्वं बहुत्वं तुल्यत्वं विशेषाधिकत्वं वा भवतीत्यल्पबहुत्वविषयकः प्रथमः प्रश्नः, भगवानाह – 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! सव्वत्थोवा' सर्वस्तो का-सर्वापेक्षया न्यूनाः ‘मणुस्सणपुंसगा' मनुष्यनपुंसका भवन्तीति । श्रेण्यसंख्येयभागवर्तिप्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति । 'णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा' मनुष्यनपुंसकापेक्षया नैरयिक नपुंसकाः असंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, अङ्गुलमानक्षेत्रप्रदेशराशौ तद्गतप्रमाणवर्गमूले द्वितीयवर्गमूलेन गुणिते यावान् प्रदेशराशिर्भवति तावत्प्रमाणासु धनीकृतस्य लोकस्यैकप्रादेशिकीषु श्रेणीषु एएसिणं भंते ! णेरइयणपुंसगाणं तिरिक्ख जोणिय णपुंसगाणं इत्यादि सूत्र-१४ टीकार्थ- गौतम ने इस सूत्र द्वारा ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन नैरयिकनपुंसकों के तिर्यग्योनिकनपुंसकों के और मनुष्यनपुंसकों के बीच में "कयरे कयरे हितो" कौन किन से "जाव विसेसाहिया" यावत् अल्प है बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? अर्थात्-हे भदन्त सामान्य रूप से नारक तिर्यञ्ज और मनुष्यनपुंसकों में से कौन किसकी अपेक्षा अल्प है ? कौन किसकी अपेक्षा बहुत है ? कौन किनकी अपेक्षा बरावर है ! और कौन किनकी अपेक्षा विशेषाधिक है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - "गोयमा। सव्वत्थोवा मणुस्स णपुंसगा" हे गौतम ! सब से कम मनुष्यनपुंसक है क्योंकि इनका प्रमाण आकाश श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितनी प्रदेशराशि है उतना कहा गया है "णेरइयणपुंसगा' असंखेज्जगुणा" मनुष्य नपुंसकों की अपेक्षा नैरयिक नपुंसकों का प्रमाण असंख्यातगुना अधिक है क्योंकि अंगुल मात्र क्षेत्र प्रदेशराशि जो प्रथम वर्गमूल होता है उस प्रथम वर्गमूल को द्वितीयवर्गमूल से गुणित करने पर अंगुल मात्र क्षेत्र प्रदेशराशि में जितनी प्रदेश राशि निष्पन्न होती है उतने प्रमाणवाली धनी कृत लोक की एक प्रदेशवाली श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेशों की संख्या हो-उतने नैरयिक "एएसिं णं भंते ! णेरइयणपुंसगाणं तिरिक्ख जो णियणपुंसगाणं" त्यादि. ટીકાર્ય–ગૌતમ સ્વામીએ આ સૂત્ર દ્વારા પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે હે ભગવન આ नैयि नसभा, तिययानि नसभा भने मनुष्य नसभा "कयरे कयरे हितो" नाथी "जाव विसेसाहिया" यावत् १८५ छ, नाथी पधारे छ, ए जाना બરાબર છે ? અને કેણ કેનાથી વિશેષાધિક છે ? અર્થાત્ હે ભગવન સામાન્ય પણાથી નારક તિર્થગય અને મનુષ્ય નપુંસકમાં કે જેનાથી અ૫ છે ? કેણ કોનાથી વધારે છે ? અને કોણ કોની બરાબર છે ? અને કણ કેનાથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ गौतम स्वामीन छ -गोयमा ! सव्वत्थो वा मणुस्स णपुंसगा" है गौतम ! सौथी ઓછા મનુષ્ય નપુંસક છે. કેમકે- તેઓનું પ્રમાણ આકાશ શ્રેણીના અસંખ્યાત ભાગમાં જીવાભિગમસૂત્ર

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