Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 611
________________ जीवाभिगमसूत्रे 'देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ' देवपुरुषापेक्षया देवस्त्रियःसंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, द्वात्रिंशद्गुणत्वादिति 'तिरिक्खजोणियणपुंसगा अणतगुणा' देव्यपेक्षया तिर्यगयोनिकनपुंसका अनन्तगुणा अधिका भवन्ति, निगोदजीवानामनन्तत्वादिति पञ्चममल्पबहुत्वमिति ॥सू० १९॥ पूर्व सामान्यविषयकाणि पञ्चाल्पबहुत्वानि प्ररूपितानि, साम्प्रतं विशेषमधिकृत्य शेषाणि चत्वारि अल्पबहुत्वानि प्रदर्शयन् विशेषस्तिर्यग्योनिकविषयकं षष्ठमल्पबहुत्वमाह—'एयासि णं भंते ! तिरिक्ख०' इत्यादि। मूलम् –'एयासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं जलयराणं थलयराणं खहयराण तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं एगिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं पुढवीकाइयएगिदियतिरिक्वजोणियणपुंसगाणं जाव वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं बेइंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं चउरिदियदिरिक्खजोणियणपुंसगाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं जलयराणं थलयराण खहयराणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! प्रतर का असंख्यातवां भाग है, उस असंख्यातवें भाग में रही हुइ जो असंख्यात श्रेणियां हैं, उन श्रेणियों में स्थित आकाश प्रदेश राशि के बराबर कहा गया है। "देबित्थियाओ संखेज्जगुणाओ" देवस्त्रियाँ देवपुरुषों की अपेक्षा संख्यात गुणी अधिक है. क्योंकि इनका प्रमाण देवपुरुषों की अपेक्षा ३२ बत्तीस गुणा अधिक कहा गया है. “तिरिक्खजोणियणपुसगा अणतगुणा" देवस्त्रियों की अपेक्षा तिर्यग्योनिक नपुंसक अनन्तगुने अधिक हैं—यह अधिकता का कथन निगोदजीवों के अनन्तानन्त होने से कहा गया है-इस प्रकार से यह पंचम अल्पबहुत्व का कथन है ।५। ॥सू०१९॥ કરતાં દેવપુરૂષો અસંખ્યાતગણી વધારે છે. કેમકે- તેમનું પ્રમાણ પ્રભૂતતર પ્રતરના અસંખ્યાત મા ભાગનું છે, તે અસંખ્યાતમા ભાગમાં રહેલી જે અસંખ્યાત શ્રેણિયો છે. તે શ્રેણિયોમાં २९ मा प्रदेश राशिनी २०२ ४९ छ. "देवित्थियाओ असंखेजगुणाओ" हेवोनी स्त्रियो દેવપુરૂષો કરતાં અસંખ્યાત ગણી વધારે છે. કેમકે–તેનું પ્રમાણ દેવ પુરૂષે કરતાં ૩૨ બત્રીસ आ धारे उडत छ. "तिरिक्खजोणियणपुंसगा" हेव स्त्रियो. ४२di (तय-योनि नस અનંત ગણું વધારે છે. આ અધિકપણાનું કથન નરકનિગોદ જી અનંતાનંત હોવાથી કહેલ છે. આ રીતે પાંચમું અલપ બહુપણું કહેવામાં આવેલ છે સૂ૦ ૧૯ જીવાભિગમસૂત્ર

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