Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 620
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ सू०२१ विशेषतः सप्तमाष्टमाल्पबहुत्वनिरूपणम् ६०७ टीका-सम्प्रति-विशेषतो मनुष्यस्त्रीनपुंसकविषयकं सप्तममल्पबहुत्वमाह-“एयासि णं भंते, इत्यादि “एयासि णं भंते' एतासां खलु भदन्त ! 'मणुस्सित्थीणं' विशेषतो मनुष्यस्त्रिणाम् “कम्मभूमियाण' कर्मभूमिकानाम् “अकम्मभूमियाणं' अकर्मभूमिकानाम् “अंतरदीवियाणं' अन्तरद्वीपिका नाम् तथा "मणुस्सपुरिसाणं' मनुष्यपुरुषाणाम् "कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं' अंतरदीवगाण य' कर्मभूमिकानामकर्मभूमिकानामन्तरद्वीपकानाम् तथा, 'मणुस्स णपुंसगाणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवगाण य' मनुण्यनपुंसकानां कर्मभूमिकानामकर्मभूमिका नामन्तरद्वीपकाना च 'कयरे कयरेहितो, कतरे कतरेभ्यः 'अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, अल्पा वा बहुका वा तुल्यावा विशेषाधिका वेति सप्तमाल्पबहुत्वविषयकः अब सूत्रकार विशेष को लेकर सातवां जो अल्पबहुत्व है उन्हें प्रकट करते हैं 'एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं' - - इत्यादि । टीकार्थ -... "एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं" इत्यादि रूप से यह गौतम ने सातवें अल्पबहुत्व को लेकर प्रश्न किया है-इसमें ऐसा पूछा है--- "एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवगाणं' हे भदन्त ! इन मनुष्यस्त्रियों के-कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियों के, अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियों के एवं अन्तरद्वीपज मनुष्यस्त्रियों के "मणुस्सपुरिसाणं कम्मभूमियाणं, अकम्मभूमियाणं अंतरदीवगाण य" मनुष्य पुरुष जो कर्मभूमिकमनुष्य पुरुषों के, अकर्मभूमिक मनुष्य पुरुषों के और अन्तर द्वीपजमनुष्य पुरुषों के तथा"मणुस्सणपुंसगाणं' कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवगाण य” मनुष्यनपुंसको के, कर्मभूमिजमनुष्य नपुंसकों के, अकर्मभूमिज मनुष्य नपुंसको के एवं अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसकों के बीच में-"कयरे कयरहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा" कौन किन से अल्प हैं ? कौन किन से बहुत हैं ? कौन किन के बराबर हैं ? और कौन किन वे सूत्र विशेषनी अपेक्षाथी सातमा ५८५ हुनु थन ४२ छ,-- “एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाण अकम्मभूमियाण" त्या टी--- २॥ विषयमा “एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं' त्यादि प्राथी गौतमस्वामी से सातभा २६५ मपणाने ६शीन प्रश्न पूथ्ये। छ. तमां से पूछ्यु छ है - "एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाण अकम्मभूमियाण अंतरदीवगाणं" हे भगवन् २॥ मनुष्य સ્ત્રિોમાં---કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિમાં અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિમાં અને અંતરદ્વીપની भनुष्य स्त्रियोमा "मणुस्स पुरिसाणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाण अंतरदीवगाण य” भनुष्य પુરુષ કે જે કર્મભૂમિના મનુષ્ય હોય છે તેઓમાં, અકર્મભૂમિના મનુષ્ય પુરૂષોમાં, અને અંતરદ્વીपना मनुष्य पुरुषोभा तथा “मणुस्स णपुंसगाण कम्मभूमियाण अकम्ममियाणं अंतरदीवगाण य" मनुष्य नधुसमा भने मतदीपना मनुष्य नसभा “कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा' नाथी ६५ छ । नाथी वधारे छे. अनी બરાબર છે અને કોણ કોનાથી વિશેષાધિક છે. પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે જીવાભિગમસૂત્ર

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