Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 593
________________ जीवाभिगमसूत्रे देवकुरूत्तरकुरुगतगर्भजमनुष्याणामन्तरद्वीपजगर्भजमनुष्येभ्यः संख्येयगुणत्वात् तथा गर्भजमनुष्याणा मुच्चाराद्याश्रयणेन संमूच्छिममनुष्याणामुत्पादात् संख्येयगुणत्वं बोध्यम् स्वस्थाने तु देवकुरूत्तर कुरुवासिद्वयानामपि स्वस्थाने परस्परं तुल्यतैवेति 'एवं जाव पुव्वविदेह अवर विदेह कम्म भूमिग मस्स पुंसगादोवितुल्ला संखेज्जगुणा एवं यावत् पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसका द्वयेऽपि संख्येयगुणा । यावत्पदेन देवकुरूत्तरकुरूमनुष्यनपुंसकापेक्षया तु हरिवर्षरम्यक वर्ष नपुंसकाः द्वयेऽपि परस्परं तुल्याः तेभ्योऽपि हैमवत हैरण्यवतवर्षा कर्मभूमिकमनुष्याःसंख्येयगुणाः स्वस्थाने तु परस्परं द्वयेऽपितुल्याः, तेभ्यो भरतैरवतवर्ष कर्मभूमिकमनुष्यनपुंकाः संख्येयगुणाः,स्वस्थानेद्वयेऽपिपरस्परं तुल्याः तेभ्य ५८० T लाये हुए होते हैं किन्तु वहां के जनमे हुए नहीं हो सकते । “देव कुरूत्तर कुरु अकम्मभूमिगादोवितुल्ला संखेज्ज गुणा " देव कुरु और उत्तर कुरु रूप अकर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसकों की अपेक्षा संख्यात गुणे अधिक हैं। क्योंकि अकर्मभूमिगत मनुष्य अन्तर द्वीपजगर्भज मनुष्यों से संख्यात गुणे अधिक हैं । गर्भज मनुष्यों के उन उच्चार प्रस्रवण आदि के सम्बन्ध से वहां समूच्छित मनुष्यों का उत्पाद होनेसे वे असंख्यात गुणे देव कुरु के और उत्तर कुरू के मनुष्य नपुंसक परस्पर आपस में तुल्य हैं " एवं जाव पुच्च विदेहावर विदेह कम्मभूमिक मणुस्स पुंसगा दोवि तुल्ला संखेज्ज गुणा " देव कुरु उत्तर कुरु अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की अपेक्षा हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के मनुष्य नपुंसक संख्यात अधिक हैं पर ये स्वस्थान में समान ही हैं- इनकी अपेक्षा भी हैमवत क्षेत्र के और हैरण्यवत क्षेत्र के जो मनुष्य नपुंसक हैं वे संख्यात गुणें अधिक हैं - पर इनमें भी आपस में तुल्यता है - इनकी अपेक्षा भरत ऐरवत क्षेत्र के मनुष्य नपुंसक संख्येय गुणे अधिक है और परस्पर में तुल्य इनकी अपेक्षा पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह के जो कर्म भूमिक मनुष्य नपुंसक નપુંસકા હાય તેા તેઓ ક ભૂમિમાંથી સહરણકરીને લાવવામાં આવેલા હાય છે. પરંતુ ત્યાંના भन्भेसा होता नथी. "देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिगा दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा" देव ३३ અને ઉત્તર કુરૂ રૂપ અકભૂમિના મનુષ્ય નપુસકેા આંતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુસકા કરતાં સંખ્યાતગણા વધારે હોય છે કેમકે અકમ ભૂમિમાં રહેલા મનુષ્ય અંતરદ્વીપના ગજ મનુષ્યા કરતાં સંખ્યાત ગણા વધારે હાય છે. ગર્ભજ મનુષ્યના ઉચ્ચાર, પ્રસ્રવણ વિગેરે મલના સંબંધથી ત્યા સંમૂમિ મનુષ્યના ઉત્પાદ થવાથી તેએ અસંખ્યાત ગણા છે. દેવमु३ भने उत्तरङ्कु३ना भनुष्य नपुं स है। परस्परमा समान छे. ' एवं जाव पुब्वविदेहावर विदेह कम्मभूमणुस्सण णपुंसगा दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा" हेव३ उत्तर३ अर्भ भूमिना मनुष्य નપુ ંસકો કરતાં હરિવષ રમ્યક વષઁના મનુષ્ય નપુસકે। સંખ્યાત ગણા વધારે હોય છે. પરંતુ તેઓ સંસ્થાનમાં સરખા જ હોય છે. તેના કરતાં પણ હેમવત ક્ષેત્રના અને હેરણ્યવત ક્ષેત્રના જીવાભિગમસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656