Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text ________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ सू० १८
नपुंसकर्म वेदकर्मबन्धस्थितिनिरूपणम् ५८७ सम्प्रति–नपुंसकवेदकर्मणो बन्धस्थिति नपुंसक वेदस्य प्रकारञ्च दर्शयितुमाह – 'पुंसगबेदसणं भंते' इत्यादि,
मूलम् — 'पुंसगवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधटिई पन्नता ? गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागा पलिओ मस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगा । उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकाकोडीओ, दोणिय वाससहस्साई अवाधा अबाहूणिया कम्मट्ठ कम्मणिसेगो । णपुंसगवेदेणं भंते! किं पगारे पन्नत्ते ? गोयमा ! महानगरदाहसमाणे पन्नत्ते समणाउसो ! सेत्तं णपुंसगा' ॥ सू० १८ ॥
छाया- - नपुंसक वेदकस्य खलु भदन्त ! कर्मणः कियन्तं कालं बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्य असंख्येयभागेनोनको उत्कर्षेण विंशतिसागरोपमस्य कोटिकोट्यः, द्वे च वर्षसहस्रे अबाधा अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः । नपुंसक वेदः खलु भदन्त ! किंप्रकारकः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! महानगरदाहसमानः प्रज्ञप्तः श्रमणायुष्मन् ! ते एते नपुंसकाः ॥सू० १८ ||
अब सूत्रकार नपुंसक वेद कर्म की बन्धस्थिति और नपुंसक वेद का प्रकार प्रकट करते- “णपुंसगवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधठिई पन्नत्ता – इत्यादि ।
टीकार्थ - यहां गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- “नपुंसक वेदस्स णं भंते ! कम्मस्स” हे भदन्त ! नसपुंक वेद कर्म की "केवइयं कालं बंधठिई पन्नत्ता" बन्धस्थिति कितने काल की कही गयी हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- "गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागापलिओमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगा" हे गौतम! नपुंसक वेद कर्म की बन्धस्थिति जघन्य से सागरोपम के सात भागों में से पल्योपम के असंख्यातवें भाग से दो सातिया भाग प्रमाण
કાયિક એક ઇન્દ્રિયવાળા નપુંસકે અનંતગુણા વધારે છે. આ પ્રમાણે આ પાંચમ નૈયિક, તિયંચ અને મનુષ્ય સંબંધી અલ્પ બહુપણુ કહ્યું છે. આ રીતે આ નપુંસકેનું અલ્પ બહુપણાનું પ્રકરણ સમાપ્ત થયુ ાસૂ॰૧ા
હવે સૂત્રકાર નપુ ́સક વૈદકમની બંધસ્થિતિ અને નપુંસક વેદના પ્રકાર પ્રગટ કરે છે.— "पुंसगवेदस्स णं भते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधठिई पण्णत्ता" इत्याहि
टीअर्थ - महियां गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछयु छे - "नपुंसकवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स” हे भगवन् नपुंस वेह उनी केवइयं कालं बंधठिई पण्णत्ता" अंधस्थिति डेटसा अजनी अहेवामां खावी छे ? या प्रश्नमा उत्तरमां प्रभुगौतम स्वामीने हे छे - "गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स दोन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगा" हे गौतम નપુંસક વેદકમની ખંધસ્થિતિ જઘન્યથી સાગરોપમના સાતભાગામાંથી પલ્યાપમના અસ
જીવાભિગમસૂત્ર
Loading... Page Navigation 1 ... 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656