Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 488
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ _ पुरुषस्थित्यादिनिरूपणम् ४७५ भावात् नियमत एव रूयादि भावगमनादिति, एतावत्कालपर्यन्तं सामान्यतः पुरुषाणां पुरुषभावेनावस्थानं भवतीति । अथ तिर्यक् पुरुषाणामवस्थानं दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह-'तिरिक्खजोणिय' इत्यादि, 'तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते' सामान्यतिर्यग्योनिकपुरुषः खलु भदन्त ! 'कालओ केच्चिरं होई' पुरुषभावापरित्यागेन कालतः कियच्चिरं कियन्तं कालं भवतीति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! सामान्यतिर्यग्योनिकपुरुषस्य 'जहन्नेणं अंतोमुहत्तं' जधन्येनान्तर्मुहूर्तमात्रमेवावस्थानं भवति 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुवकोडीपुहत्तमब्भहियाई' उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि पूर्व कोटिपृथक्त्वाभ्यधिकानि । द्विपूर्वकोटित आरभ्य नव पूर्वकोटि पर्यन्ताधिकपल्योपमत्रयं यावत् सामान्यतस्तिर्यग्योनिकपुरुषाणामवस्थानं भवतीति भावः । एवं तं चेव' एवं तदेव स्थानं यत् एतस्यैव स्त्रीप्रकरणे कथितम् 'सचिटणा जहा इत्थीण' संस्थितियथा तिर्यस्त्रीणाम् कियत्पर्यन्तं तत्राह-'जाव' इत्यादि, जाव खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसस्स संचिटणा' यावत् जलचरस्थल चरखेचरतिर्यग्योनिकपुरुषस्य संस्थितिः । से जानना चाहिये। इसके बाद पुरुष नामकर्मोदय का उसके अभाव हो जाता है । अतः नियम से स्यादि भावों में चला जाता है। इस प्रकार का यह सामान्य कथन है। विशेष कथन इस प्रकार से है--"तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ' हे भदन्त ! लगातार तिर्यञ्च पुरुष तिर्यञ्च पुरुष रूप से कितने काल तक बना रहता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - "गोयमा ! जहन्नेणं अंतो मुहत्त उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुस्खकोडिपुहुनमब्भहियाई" हे गौतम ! तिर्यक पुरुष तिर्यग पुरुष रूप में कम से कम तो एक अन्तर्मुहूर्त तक बना रहता है और अधिक से अधिक पूर्वकाटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक बना रहता है यह तिर्यग् पुरुष का तिर्यक् पुरुष रूपसे निरन्तर होते रहने के कालका कथन सामान्य से है "एवं तं चेव संचिटणा जहा इत्थीणं जाव खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसस्स" संचिटणा, इस प्रकार से इसके स्त्री प्रकरण જોઈએ તે પછી પુરુષનામકર્મોદયને તેને અભાવ થઈ જાય છે તેથી તે નિયમથી સ્ત્રી વિગેરે મા ચાલ્યા જાય છે. આ રીતનુ આ સામાન્ય કથન છે. વિશેષ કથન આ प्रभारी छ. "तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होई"सावन तिय"य પુરુષપણાથી લાગઠ કેટલા કાળ સુધી બન્યો રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ स्वामीन छ - गोयमा जहण्णेण अंतोमहतं उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाई पुवकोडिपुरतमहियाई'' गौतम! तिय पुरुष ति" पुरुषपणाथी माछामा माछ। એક અંતમુહૂર્ત સુધી બન્યા રહે છે અને વધારેમાં વધારે પૂર્વ કેટિ પૃથક્વ અધિક ત્રણ પલ્યોપમ સુધી બની રહે છે. આ કથન તિય પુરુષનુ તિર્યક પુરુષપણુથી નિરંતર मन्या रवाना नु सामान्यna vथन छे. "एवं तं चेव संचिट्ठणा जहा इत्थीण जाव खहयरतिरिक्खजोणिय पुरिसस्स संचिट्ठणा" मा शत माना स्त्री प्र४२६ मा रेवी शतनी જીવાભિગમસૂત્ર

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