Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 562
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ नपुंसकानां सिथितिनिरूपणम् ५४९ सप्त सागरोपमाणि उत्कर्षतो दश ४, धूमप्रभायां जघन्यतो दशसागरोपमाणि, उत्कर्षतः सप्तदश ५, तमःप्रभापृथिव्यां जधन्यतः सप्तदशसागरोपमाणि उत्कर्षतो द्वाविंशतिः ६, अधःसप्तमपृथिवीनैरयिकनपुंसकानां स्थिति धन्यतो द्वाविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कर्षतस्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि इति ॥ स्थिति दर्शयति-तिरिक्खजोणिय णपुंसएणं भंते' तिर्यगयोनिकनपुंसकः खलु भदन्त ! 'तिरिक्खजोणिय णपुंसगत्ति कालओ केवच्चिरं होई' तिर्यग् योनिकनपुंसक इति कालतः कियच्चिरं भवति इति प्रश्नः, भगवानाह—'गोयमा' इत्यादि, 'गीयमा' हे गौतम ? 'जहन्नेणं अंतो मुहतं' जधन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं वणस्सई कालो ३, पंकप्रभा पृथिवी में जघन्यसे सात सागरोपम की उत्कृष्ट से दस सागरोपम की ४, धूमप्रभा पृथिवी में जधन्य से दस सागरोपम की उत्कृष्ट से सत्रह सागरोपमकी, तमःप्रभा पृथिवी में जधन्य से सत्रह सागरोपम की और उत्कृष्ट से बाईस सागरोपमक ६, और अधः सप्तमो तमतमा पृथिवी के नैरयिकों की स्थिति जधन्य से बाईस सागरोपम की उत्कृष्ट से तैंतीस सागरोपम की है। इस प्रकार सब पृथिवियों की स्थिति यहां कहनी चाहिये । __अब सूत्रकार सामान्यतः तिर्यग्योनिक की कायस्थिति का कालमान प्रकट करते हैंइसमें गौतमने 'तिरिक्खजोणिय णपुंसए गं भंते ! तिरिय जोणिय णपुंसगत्ति कालओ केवच्चिरं होई" इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है हे भदन्त ! तिर्यग्योनिक नपुंसक यह तिर्यग्योनिक नपुंसक है- इस रूप से कितने कालतक होता रहता है ? अर्थात् ! तर्यग्योनिक नपुसक की कायस्थिति का कालमान कितना है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है --- 'गोयमा ! जहन्नेगं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो" हे गौतम ! तिर्यग्योनिक नपुंसक यदि तिर्यग्योनिक नपुंसक रूप से बराबर होता रहता है तो वह कम से कम एक समय तक होता है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल प्रमाण अनन्तकाल પમની છે. ૪ ધૂમ પ્રભા પૃથ્વીમાં જઘન્યથી દસસાગરોપમની અને ઉત્કૃષ્ટથી સત્તરસાગરે પમની છે. ૫ તમ પ્રભા પૃથ્વીમાં જઘન્યથી સત્તર સાગરોપમની અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨ બાવીસ સાગરે પમની છે. ૬ અને અધઃ સપ્તમી તમતમાં પૃથ્વીના નૈરયિકેની જઘન્યસ્થિતિ ૨૨ બાવીસ સાગરોપમની અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની રિથતિ છે. આ પ્રમાણે સઘળી પૃથ્વીએની સ્થિતિ અહિયાં કહેવી જોઈએ. હવે સૂત્રકાર સામાન્યપણાથી તિર્યંગેનિકની કાય સ્થિતિનો કાલ માન બતાવે છે. ગૌતમ स्वामी तिरिक्ख जोणिय नपुंसएणं भंते ! तिरिय जोणिय णपुंसगत्ति कालओ केवच्चिरं होई" मा सूत्रद्वारा प्रसुने सेवा प्रश्न पूछ्या छ -३ लगवन् तिर्थयानि नधुस४ मा તિર્યનિક નપુંસક છે, આ રીતે કેટલાકાળ સુધી થતા રહે છે, અર્થાત્ તિર્યનિક નપુંસકની કાય સ્થિતિનો કાળમાન કેટલો છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે 3-"गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइ कालो" हे गौतम ! तिय योनि નપુંસક જે તિર્યંચેનિક નપુંસકપણુથી થતા રહે તો તે ઓછામાં ઓછાં એક સમય સુધી થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાળ પ્રમાણ એટલે કે અનંતકાળ સુધી થતા રહે છે. આ જીવાભિગમસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656