Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ जीवाभिगमसूत्रे रम्यकवर्षकाकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकरय देव कुरूतरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकस्य अन्तरद्वीपकमनुष्यनपुंसकस्य च जन्मसंहरणापेक्षया उपर्युक्तैव स्थितिर्वेदितव्येति ॥सू० १४॥ ___नपुंसकानां भवस्थितिं प्रदर्य सम्प्रति तेषां कायस्थिति दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह --- ‘णपुंस एणं भंते' इत्यादि,
मूलम्—णपुंसए णं भंते ! णपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं तरुकालओ। णेरइयणपुंसएणं भंते ! णेरइयणपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होई ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं एवं पुढवीए ठिई भाणियव्वा ।तिरिक्ख जोणियणपुंसए णं भंते ! तिरिक्वजोणियणपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं एगिदियणपुंसगस्स णं, वणस्सइकाइयस्स वि एवमेव । सेसाणं जहन्नेण अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया । बेइंदिय तेइंदिय चउरिदियणपुंसगाण य जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेज्जं कालं । पचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसएणं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुसएत्तिकालओ केवच्चिरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुवकोडिपुहुत्तं । एवं जलयरतिरिक्खचउप्पयथलयरउरपरिसप्पभुय - परिसप्पमहोरगाण वि ॥ मणुस्सणपुंसगस्सणं भंते! मणुस्सणपुंसएत्ति अकर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकों की तथा अन्तर द्वीपक मनुष्य नपुंसकों की हैं जधन्य और उत्कृष्ट से जानना चाहिये । सूत्र ॥१२॥
इस प्रकार नपुसकों की भवस्थिति प्रकट करके अब सूत्रकार इनकी कायस्थिति का कथन करते हैं-णपुंसएणं भंते । णपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ હરિવર્ષ રમકવર્ષ, દેવકુરૂ અને ઉત્તરકુરૂ આ અકર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુંસકની તથા અંતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુંસકેની પણ સમજવી. અને તે જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ બન્ને પ્રકારથી समावी. ॥सू०१२॥
આ પ્રમાણે નપુંસકેની ભવસ્થિતિ પ્રગટ કરીને હવે સૂત્રકાર તેમની કાયસ્થિતિનું કથન ४२ छ.-'णपुंसगस्स णं भंते ! णपुंसएत्ति कालओ केवच्चिरं होई' या
જીવાભિગમસૂત્ર
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