Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 555
________________ ५४२ जीवाभिगमसूत्रे प्रव्रज्याप्राप्तिमधिकृत्य 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्त' जघन्येनान्तमुहूर्तम् ततः परं मरणादिभावात् 'उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिर्भवति वर्षाष्टकादूर्ध्वं संयमप्राप्तेरनन्तरमाजन्मसंयमपरिपालनाद्देशोनत्वमिति । कम्मभूमिग भरहेरवयपुव्वविदेहअवर विदेहमणुस्सणपुंसगस्स वि तहेव' कर्मभूमिक भरतैरवतपूर्व विदेहापरविदेह मनुष्यनपुंसकस्यापि तथैव, यथा सामान्यतो मनुष्य नपुंसकवदेव । तथाहि- कर्मभूमिक भरतैरवतविदेहापरविदेहमनुष्यनपुंसकस्य क्षेत्रापेक्षया जधन्येनान्तर्मुहूतमुत्कर्षण पूर्वकोटिरेवेति, धर्मचरणापेक्षया जधन्यतोऽन्तर्मुहूतमुत्कर्षतो देशोना पूर्वकोटिरिति । 'अकम्म भूमिगमणुस्स णपुंसगस्स णं भंते' अकर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकस्य खलु भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं पडुच्च' जन्म प्रतीत्य-जन्मापेक्षया 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' जधन्येनान्तर्मुहूर्त्तम्, 'उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' उत्कर्षणापि अन्तहै और उत्कृष्ट स्थिति देशोन एक पूर्व कोंटिकी है । यहां आठ वर्ष में संयम प्राप्ति के अनन्तर जीवन पर्यन्त संयम पालना यही देशोनता है । “कम्मभूमिग भरहेरवयपुव्वविदेहावरविदेहमणुस्सण पुंसगस्स वि तहेव" भरत और ऐरवत क्षेत्र रूप कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की भी स्थिति क्षेत्र की अपेक्षा एवं चारित्र धर्म की अपेक्षा जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से जैसी ऊपर में कही गई है वैसी है । तथा पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह के मनुष्य नपुंसक की जधन्य स्थिति क्षेत्र की अपेक्षा एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्व कोटिकी है । तथा चारित्र धर्म की अपेक्षा लेकर इन कर्म भूमिक क्षेत्र के नपुंसक की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टस्थिति देशोन पूर्व कोटिकी है ।- "अकम्मभूमिग मणुस्सणपुंसगस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" गौतम ने पुनः इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! अकर्मभृमिक मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितने कालकी कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा । जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं वि अंतो मुहत्तं" हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा लेकर अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की जधन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी एक अन्तर्मुहूर्त की है । अकर्मમનુષ્ય નપુંસકની સ્થિતિ પણ ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી અને ચારિત્ર ધમની અપેક્ષાએ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તની અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વોક્ત કથન પ્રમાણેની સમજવી તથા પૂર્વ વિદેહ અને પશ્ચિમ વિદેહના મનુષ્ય નપુંસકોની જઘન્ય સ્થિતિ ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી એક અંતર્મુહૂર્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ એક પૂર્વ કેન્ટિની છે. તથા ચારિત્રધર્મની અપેક્ષાથી આ કર્મભૂમિ ક્ષેત્રના નપુસકેની જઘન્યસ્થિતિ એક અંતર્મુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ દેશના પૂર્વ કેટિની છે. "अकम्मभूमिगमणुस्सणपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" गीतभस्वाभीमे ફરીથી આ સૂત્ર દ્વારા પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે કે-હે ભગવન અકર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુસકેની स्थिति सानी पामा आगो छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसु छ -'गोयमा! जम्माणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वि अंतोमुहुतं' 3 गौतम ! भनी अपेક્ષાથી અકર્મ ભૂમિના મનુષ્ય નપુંસકેની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતમુહૂર્તની છે. અને ઉત્કૃષ્ટ જીવાભિગમસૂત્ર

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