Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २
पुरुषाणामल्पबहुत्व निरूपणम् ५१७
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'भर हेरवयवासकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो वितुल्ला संखेज्जगुणा' हैमवत हैरण्यवतवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषापेक्षया भरतैरवतकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषाः संख्येयगुणा अधिका भवन्ति, अजितस्वामिकाले उत्कृष्टपदे इव स्वभावतः, एवात्र मनुष्य पुरुषाणामति प्राचुर्येण संभवात् द्वयोः क्षेत्रयोस्तुल्यत्वाद् द्वयेऽपि परस्परं तुल्याः । ' पुच्वविदेह अवरविदेहकम्मभूमिमणुपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' भरतैरवतकर्मभूमिकमनुष्यापेक्षया पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्या द्वयेऽपि तुल्याः संख्येयगुणा अधिका भवन्ति, क्षेत्रबाहुल्यात् अजितस्वामिकाले उत्कृष्टपदे इव स्वभावत एव मनुष्यपुरुषाणां प्रचुरतया संभवात् । अणुत्तरोववाइयदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा' पूर्वविदेहाऽपरविदेहमनुष्यपुरुषापेक्षया अनुत्तरोपपातिकदेवपुरुषा असंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, क्षेत्रपल्योपमा संख्ये य भागवकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् । 'उवमनुष्यपुरुष-प्रचुर बहुत मिलते हैं । 'भर हेरवयवासकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो वितुल्ला संखेज्जगुणा' हैमवत हैरण्यवत वर्ष अकर्म भूमि के मनुष्य के पुरुषों की अपेक्षा भरत ऐरवत इन दोनों क्षेत्रके मनुष्य पुरुष क्षेत्र की समानता से दोनों परस्पर समान होते हुए संख्यात गुणे अधिक होते हैं, क्योंकि अजित स्वामी के समय में उत्कृष्टता के जैसे स्वभाव से ही यहां मनुष्य पुरुष अति प्रचुर मात्रा में होते हैं । 'पुव्वविदेहअव र विदेहकम्म भूमिगमणुस्स पुरिसा दो वितुल्ला संखेज्जगुणा' भरत ऐखत इन दोनों क्षेत्रों के मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा पूर्वविदेह अपरविदेह इन दोनों क्षेत्रों के मनुष्यपुरुष क्षेत्र की समानता से दोनों समान संख्यक होते हुए संख्यातगुणे अधिक होते हैं, क्योंकि भरत ऐरवत क्षेत्रों के जैसे यहां भी अजित स्वामी के समय की उत्कृष्टता के समान स्वभावसे ही यहां मनुष्य पुरुष प्रचुर मात्रामें होते हैं । 'अणुत्तरोववाइयदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा' पूर्वविदेह अपरविदेह के मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा अनुत्तरोपपातिक देव पुरुष असंख्यात गुणे अधिक होते हैं, क्योंकि ये क्षेत्र हेरवयवासकम्मग भूमिगमणुस्स पुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा” डैभवत ने हैरएय વત વર્ષ અકમભૂમિના મનુષ્ય પુરુષા કરતાં ભરત અને અરવત આ બેઉ ક્ષેત્રોના મનુષ્ય પુરુષ ક્ષેત્રના સરખાપણાથી પરસ્પર બન્ને સરખા છે. અને સખ્યાતગણા વધારે હોય છે. કેમકે અજીતસ્વામીના સમયમાં ઉત્કૃષ્ટ પણાની માફ્ક સ્વભાવથીજ અહિયાં મનુષ્ય પુરુષ अत्य ंत वधारे प्रभाशुभां होय छे, “पुव्वविदेह अवर विदेहकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा” भरत अने भैरवत मा भन्ने क्षेत्रोना मनुष्य पुरुष उरता मा पूर्व विदेह અપર વિદેહ આ એ ક્ષેત્રોના મનુષ્ય પુરૂષ ક્ષેત્રના સરખા પણાથી સરખી સખ્યા વાળા છે. અને સંખ્યાતગણા વધારે છે. કેમકે -ભરત અને ઐરવત ક્ષેત્રની જેમ અહિં પણ અજીત સ્વામી ના સમયના ઉત્કૃષ્ટ પણાની જેમ સ્વભાવથી જ અહિયાં મનુષ્ય પુરૂષ વધારે પ્રમાણમાં હાય છે. "अणुत्तरोववाइयदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा" पूर्व विहे भने अपर विछेड़ना मनुष्य पुरुष કરતાં અનુત્તર પપાતિક દેવ પુરુષ અસ`ખ્યાત ગણા વધારે હાય છે. કેમકે--તે ક્ષેત્ર પલ્યા
જીવાભિગમસૂત્ર