Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 515
________________ ૧૦૨ __जीवाभिगमसूत्रे भूमिकमनुष्याः संख्येयगुणा अधिका एतेषां द्वयानां परस्परं तुल्यतैव ! एतदपेक्षया हरिवर्षरम्यकवर्षाकर्म भूमिकमनुष्या संख्येयगुणा अधिका स्तथा इमे द्वये परस्परं तुल्याः । एतदपेक्षया हैमवतैरण्यवतवर्षाकर्मभूमिकमनुष्याः संख्येयगुणा अधिकाः परस्परमिमे द्वये तुल्याः । भरतैर वतवर्षकर्मभूमिकमनुष्याः पूर्वापेक्षया संख्येयगुणा अधिकाः परस्परमिमे द्वये तुल्याः। पूर्व विदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषाः पूर्वापेक्षया संख्येयगुणा अधिका भवन्ति तथा परस्परमेतेषां तुल्यता भवति ।३॥ एतत्पर्यन्तमल्पबहुत्वत्रयं यावत्पदेन संग्राह्यम् । एतानि त्रीणि अल्प बहुत्वानि सन्ति' चतुर्थं देवपुरुष विषयकमल्पबहुत्वं सूत्रकारः स्वयमेव दर्शयति 'एएसि णं भंते देव पुरिसाणं' इत्यादि । 'एएसि णं भंते' एतेषां खलु भदन्त ! 'देवपुरिसाणं' देवपुरुषाणां-सामान्यतो देवपुरुषाणाम् 'भवणवासीणं' भवनवासिनां भवनवासि देवानाम् 'वाणमंराणं' वानव्यन्तराणाम्पुरुष हैं अन्तरद्वाप के मनुष्य पुरुषो को अपेक्षा देवकुरु और उत्तर कुरुके मनुष्य पुरुष परस्परमें दोनों समान होते हुए संख्यातगुणे अधिक हैं । इनको अपेक्षा हरिवर्ष और रम्यक वर्ष के मनुष्य पुरुष परस्पर में दोनों समान होते हुये संख्यातगुणे अधिक होते हैं, इनकी अपेक्षा हैमवत और हैरण्यवतक्षेत्रके मनुष्य पुरुष परस्पर में दोनों समान होते हुए असंख्यातगुणे अधिक होते हैं, इनकी अपेक्षा भरत और ऐरवत क्षेत्रके मनुष्य पुरुष परस्परमें समान होते हुऐ संख्यातगुणे अधिक होते हैं. इनकी अपेक्षा पूर्वविदेह और अपर विदेहके मनुष्य पुरुष परस्परमें समान होते हुए संख्यातगुणे अधिक होते हैं । यह तीसरा अल्पबहुत्व है ३ । इस प्रकार मनुष्य पुरुष तक इन तीन अल्पबहुत्वों का यहां यावत्पदसे ग्रहण हुआ है। अब देवपुरुषों का अल्पबहुत्व सूत्रकार स्वयं कहते हैं--"एए सिणं भंते इत्यादि ____ 'एएसिणं भंते' हे भदन्त ! इन 'देवपुरिसाणं' देवपुरुषों का अर्थात् सामान्य देवपुरुषों का, जिनमें 'भवनवासीणं' भवनवासीदेवोंके 'वाणमंतगणं' वानव्यन्तर देवोंके અને ઉત્તર કુરના મનુષ્ય પુરૂષ અને અન્ય બને સરખા છે. અને સંખ્યાત ગણું વધારે છે. તેના કરતાં હરિવર્ષ અને રમક વર્ષના મનુષ્ય પુરૂષ અને પરસ્પરમાં સરખા છે. અને સંખ્યાત ગણું વધારે છે. તેના કરતાં હિંમત અને હૈરણ્યવત ક્ષેત્રના મનુષ્ય પુરૂષ પરસ્પરમાં બને સમાન છે. અને સંખ્યાત ગણું વધારે છે. તેના કરતાં પૂર્વ વિદેહ અને અપર વિદેહના મનુષ્ય પુરૂષે પરસ્પરમાં સમાન છે, અને સંખ્યાત ગણા વધારે છે. આ ત્રીજુ અલ્પ બહપણું છે. ૩ આ પ્રમાણે મનુષ્ય પુરૂષ સુધી ત્રણ અલ્પ બહુપણાનું ગ્રહણ અહિંયા યાવત્ પદથી થયેલ છે. वे याथा हेवपुरुषानुम६५ महुपार सूत्रा२ पोते मतपतi ४ छ ?--"एएसिणं भंते !" त्याहि. “एएसि णं भंते ! हे सावन मा "देवपुरिसाणं" व ५३षानु अर्थात् सामान्य देव ५३षानुरेमा ‘भवणवासीणं" लवनवासी वोमी भने "वाणमंतराणं" पानव्य જીવાભિગમસૂત્રા

Loading...

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656