Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ स्थलचरपरिसर्पसंमूच्छिम पं. ति. जीवनिरूपणम् २८५
इन्द्रियद्वारे- 'पंच इंदिया' पञ्च-श्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पर्शनाख्यानि इन्द्रियाणि भवन्तीति इन्द्रियद्वारम् ॥८॥
समुद्घातद्वारे-'पंच समुग्घाया आदिल्ला' समुद्घाताः पञ्च आद्याः वेदनाकषायमारणान्तिकवैक्रियतैजसाख्या भवन्तीति समुद्घातद्वारम् ॥९॥
संज्ञिद्वारे- 'सण्णी नो असण्णी' गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरजीवाः संज्ञिनो भवन्ति नत्वसंज्ञिनो भवन्ति तेषां मनसः सद्भावात् , इति संज्ञाद्वारम् ॥१०॥ वेदद्वारे-'तिविहवेया' इमे जलचरजीवा स्त्रिविधवेदा स्त्रिप्रकारकवेदवन्तः स्त्रीपुंनपुंसकवेदा भवन्तीति वेदद्वारम् ॥११॥
__पर्याप्तिद्वारे---'छप्पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ' जलचरजीवानां षट् पर्याप्तयः षट् अपर्याप्तयश्च भवन्तीति पर्याप्तिद्वारम् ॥१२। दृष्टिद्वारे-'दिट्ठी तिविहा वि' दृष्टयस्त्रिविधा अपि सम्यगदृष्टिमिथ्यादृष्टिर्मिश्रदृष्टिश्चेति तिस्रोऽपि दृष्टयो भवन्तीति दृष्टिद्वारम् ॥१३॥ दर्शनकृष्ण, नील, कापोत, तैजस, पद्म और शुक्ल ये छहों लेश्याएँ होती हैं। इन्द्रिय द्वार में इनको "पंच इंदिया" कर्ण, चक्षु, घाण, रसन, स्पर्शन-ये पांच इन्द्रियां होती हैं । समुद्घात द्वार में "पंच समुग्घाया आदिल्ला" इनके आदि के वेदना, कषाय मारणान्तिक, वैक्रिय
और तैजस ये पांच समुद्धात होते हैं । संज्ञिद्वार में ये 'संग्णी नो असण्णी' संज्ञी ही होते हैं असंज्ञी नहीं होते हैं। क्योंकि गर्भज जलचर जीवों को मन का सद्भाव होता है। वेदद्वार में "तिविहा वेदा" ये जलचर जीव तीनों वेद वाले होते हैं-स्त्री वेदवाले भी होते हैं, और पुरुष वेद वाले भी होते हैं, नपुंसक वेद वाले भी होते हैं। पर्याप्तिद्वार में-इनको "छ प्पज्जत्तीओ, छ अपज्जतीओ" छह पर्याप्तियां होती है और छह अपर्याप्तियां होती हैं। अपनी अपनी योग्य पर्याप्तिकी ही पूर्णता नहीं होनी यही अपर्याप्तता है। दृष्टिद्वार में "दिट्टी तिविहा वि" ये सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्र ५० मन शुद मा छये श्याम डाय छे. छन्द्रयद्वारमा तयाने "पंच इंदिया" अन, यक्षु, प्र]-13, २सना, २५शन मपाय धन्द्रिय हाय छे. समुद्धातामां-"पंचसमुग्धाया आदिल्ला" तेभने माहिना वहना, ४ाय, भारतिs, यि, अन तेरस मा पांय समुद्धात डाय छे. सद्विारमा 'सण्णी नो असण्णो" संज्ञी ४ डाय छ, असशी हाता नथी. भ- or arसयर वोन 'मन' हाय छे. वेदवारमां-"तिविहा वेदा" હે જલચર જીવો ત્રણ વેદવાળા હોય છે. એટલે કે સ્ત્રીવેદવાળા પણ હોય છે, પુરુષ વેદवाणा ५६ डाय छे. अननस वाणा पण हाय छे. पर्याप्तिवारभा-याने "छपज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ" ७ पर्याप्तियो डाय छ, मन छ भस्तिया डाय छ, पात. पाताने योग्य पर्याप्त पूर्ण न डाय ते सात उपाय छे. हवामां-"दिट्ठी तिविहा वि" तम्मा सभ्य टिवाणा ५६४ डाय छ, मिथ्या टप ५५ डाय छे. मने સસ્પેગ્નિટ્યા દષ્ટિવાળા પણ હોય છે. એટલે કે ત્રણે પ્રકારની દૃષ્ટિવાળા હોય છે.
જીવાભિગમસૂત્ર