Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 398
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ स्त्रीणां भवस्थितिमाननिरूपणम् ३८५ कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पनत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ताकथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं क्षेत्रं प्रतीत्य आश्रित्य कर्मभूमिजः सामान्यलक्षणमधिकृत्येत्यर्थः, जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाई' उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि, कर्मभूमिकमनुष्यत्रोणां क्षेत्रमाश्रित्य जधन्यतोऽन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षतस्त्रीणि पल्योपमानि, एषां स्थितिर्भरतैरवतेषु सुषमसुषमालक्षणे आरके ज्ञातव्येति भावः । 'धम्मचरण पडुच्च' धर्मचरणं-चरणधर्म प्रतीत्य-आश्रित्य चरणधर्माश्रयणेनेत्यर्थः 'जहन्नेणं अतोमुहत्तं' जघन्येनान्तमुहूर्ता स्थितिः 'उक्कोसेण देसूणा पुवकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः, देशोनपर्वकोटिप्रमाणा स्थितिरित्यर्थः। भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते'? भरतैरवतकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम पण्णत्ता" हे भदन्त ! कर्मभूमि मनुष्यस्त्रियों की भवस्थिति ! कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं" हे गौतम ! क्षेत्र का आश्रय करके सामान्य से कर्मभूमि रूप क्षेत्र की अपेक्षा लेकर कर्मभूमि मनुष्यस्त्रियों की भवस्थिति जधन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है और 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई उत्कर्ष से तीन पल्योपम की कही गई है यह तीन पल्योपम की स्थिति भरत और ऐरवत क्षेत्र में जब सुषमसुषमा नामका आरक होता है तब होता है। तथा-"धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी" चारित्र धर्म को अंगीकार करने की अपेक्षा से इन कर्मभूमिक स्त्रियों की जघन्य स्थिति तो एक अन्तर्मुहूर्त की होती है और उत्कृष्ट स्थिति देशोन कुछ कम एक पूर्व कोटिकी होती है । "भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थीण भंते । केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" हे भदन्त ? भरत एवं ऐरवत क्षेत्ररूप कर्मभूमिकी मनुष्यस्त्रियों મનુષ્ય સ્ત્રિની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ हे छ ?-- "गोयमा ! खेत्तं पड्डच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं" हे गौतम ! क्षेत्र सामान्यथी કર્મભૂમિરૂપ ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી કર્મભૂમિ જ મનુષ્ય યેિની ભાવસ્થિતિ જઘન્યથી તે એક मत इतनी ही छ. अने "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइ" 6ष्टथी त्र पत्या५મની કહેવામાં આવેલ છે. આ ત્રણ પલ્યોપમની સ્થિતિ ભરત અને એરવત क्षेत्रमा न्यारे सुषम सुषमा नाभनो मारे थाय छे. त्यारे थाय छे. तथा-"धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी" यास्त्र धर्म અંગીકાર કરવાની અપેક્ષાથી આ કર્મભૂમિની સિયોની જઘન્ય સ્થિતિ તો એક અંતર્મહત ना होय छे. सने कृष्ट स्थिति शान-७४ माछी से पूटिनी हाय छे. "भरहेरवय कम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" है भगवन् मरत अने. એરવત ક્ષેત્રરૂપ કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિયાની ભવસ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવેલ છે? જીવાભિગમસૂત્ર

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