Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
द्वारे - 'तिणि दंसणा ' त्रीणि दर्शनानि-चक्षुरचक्षुरवध्याख्यानि भवन्तीति दर्शनद्वारम् ||१४|| ज्ञानद्वारे - 'नाणी व अन्नाणी वि' इमे जलचरजीवा ज्ञानिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिनोऽपि भवन्ति, तत्र 'जे नाणी ते अत्थे गइया दुन्नाणी' ये जलचरजीवाः ज्ञानिनस्ते सन्त्येक के द्विज्ञानिनो भवन्ति, 'अत्थेगइया तिन्नाणी' सन्त्येकके त्रिज्ञानिनः अवधिज्ञानस्यापि केषाञ्चित्सद्भावात् । 'जे दुन्नाणी ते नियमा आभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य' तत्र ये द्विज्ञानिनस्ते नियमात् आभिनिबोधिकज्ञानिनश्च भवन्ति श्रुतज्ञानिनश्च भवन्तीति । 'जे तिन्नाणी ते नियमा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी' तत्र ये त्रिज्ञानिनस्ते नियमात् आभिनिबोधिकज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनः अवधिज्ञानिनश्च भवन्तीति । ' एवं अन्नाणी वि' एवमज्ञानिनोऽऽपि भवन्तीति, सत्र ये अज्ञानिनस्ते केचन द्वयज्ञानिनो भवन्ति सन्त्येकके त्र्यज्ञानिनो भवन्ति केषाञ्चिद विभङ्गस्यापि संभवात् तत्र ये ज्ञानिनस्ते नियमतो मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनो विभङ्गज्ञानिनश्च दृष्टि भी होते हैं । दर्शनद्वार में " तिणि दंसणा " इसको चक्षुर्दर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये तीनों दर्शन होते ज्ञान द्वार में- नाणी वि अन्नाणी वि' ये ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । " नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी" यदि ये ज्ञानी होते हैं तो इनमें कितनेक मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी ऐसे दो ज्ञान वाले होते हैं और कितने क
हैं
जे
तीन ज्ञानवाले होते हैं।
" तिन्नाणी" त्रिज्ञानी - मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी ऐसे क्योंकि किन्हीं २ गर्मज जलचर जीवों को अवधिज्ञान का भी सद्भाव पाया जाता है । यहो बात - " जे दुन्नाणी ते नियमा आभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य, जे तिन्नाणी ते नियमा आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी ओहिनाणी" इन सूत्रपाठों द्वारा प्रकट की गई । " एवं अन्नाणी वि" इसी प्रकार से जो गर्भज जलचर जीव अज्ञान वाले होते हैंतो इन में कितनेक दो अज्ञान वाले - मतिमज्ञानवाले और श्रुतअज्ञान वाले - होते हैं और कितने तीन अज्ञान वाले - मतिअज्ञान वाले, श्रुतअज्ञान वाले और विभंग ज्ञान वाले होते हैं । हर्शनद्वारभां -- "तिम्नि दंसणा " तेयाने यक्षुहर्शन, अध्यक्षुहर्शन, भने अवधिदर्शन ये त्र हर्शन होय छे. ज्ञानद्वारभां - " नाणी वि अन्नाणी वि" तेथेो ज्ञानी पशु होय छे, मने अज्ञानी पशु होय छे. "जे नाणी ते अत्थेगइया दुम्नाणी अत्थेगइया तिन्नाणी" तेथे ने ज्ञानी होय छे तो उटवाउ भतिज्ञान भने श्रुतज्ञान मे मे ज्ञानવાળા હાય છે. અને કેટલાક મતિજ્ઞાનવાળા, શ્રુતજ્ઞાનવાળા અને અવધિજ્ઞાનવાળા એમ ત્રણ જ્ઞાનવાળા હાય છે, કેમકે-કાઈ કેાઈ ગભ જ જલચર જીવાને અવધિજ્ઞાનના सहुलाव होय छे. मे ४ वात "जे दुन्नाणी ते नियमा आभिनिबोहियनाणी य सुयनाणी थ, जे तिन्नाणी ते नियमा आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी" या सूत्रपाठ द्वारा अउट ५२वामां आवे छे. "एवं अण्णाणी वि” मा प्रभा ने गर्भ सर જીવ અજ્ઞાનવાળા હોય છે, તે તેમાં કેટલાક મતિ અજ્ઞાન, અને શ્રુતઅજ્ઞાન
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જીવાભિગમસૂત્ર
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