Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ संमूच्छिम स्थलचर पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक निरूपणम् २४१ र्यग्योनिकाः तथा - ' परिसप्पथलयर संमुच्छिम पंचिंदियतिरिक्ख जोणिया' परिसर्पस्थलचरसंमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाश्च तथा च चतुष्पदपरिसर्पभेदात् स्थलचरा द्विविधा भवन्तीति भावः । ' से किं तं थलयरचउप्पयसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोगिया' अथ के ते स्थलचर चतुष्पद संमूच्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका इति चतुष्पदाः किं लक्षणाः कियन्तश्च भेदा इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'थलयरच उप्पयसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पन्नत्ता' स्थलचर चतुष्पद संमूच्छिमपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाश्चतुर्विधाः- चतुःप्रकारकाः प्रज्ञप्ताःकथिताः, इति । चातुर्विध्यं दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणफया जाव' एकखुरा द्विखुरा गण्डीपदाः सनखपदा यावत् । अत्र यावत्पदेन प्रज्ञापनाप्रकरणं संगृहीतं भवति, प्रज्ञपनासूत्रस्य प्रथमपदे चतुष्पदस्थलचरस्य यथा भेदो वर्णितस्तथैव अत्रापि स भेदो वर्णयितव्य, तथाहि - 'एगखुरा दुखुरा गंडीपया और "परिसप्पथलयर संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया " परिसर्पस्थलचर संमूच्छिम पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीव, इस चतुष्पद और परिसर्प के भेद से स्थलचर पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीव दो प्रकार के होते हैं । " से किं तं थलयरच उप्पयसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया ' हे भदन्त ! ये स्थलचर चतुष्पद संमूच्छिम पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीव कितने भेद वाले होते हैं उत्तर में प्रभु कहते हैं – “थलयरच उप्पयसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउ च्विहा पण्णत्ता" हे गौतम ! स्थलचर चतुष्पद संमूच्छिम पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव चार प्रकार के कहे गये हैं "तं जहा " वे इस प्रकार से हैं- “एगखुरा, दुखुरा, गण्डीपया, सणफया जाव" एक खुरवाले, दो खुवाले, गण्डीपद, और सनखपद यहाँ यावत्पद से प्रज्ञापना का प्रकरण संगृहीत हुआ है । अतः प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद में चतुष्पद स्थलचर, के भेद जिस प्रकार से वर्णित हुए हैं उसी प्रकार से यहाँ पर ग्रहण कर लेना चाहिए । वह प्रज्ञापना का प्रकरण टीका में संग्रह किया गया है उनका अर्थ इस प्रकार से है – इनमें यरसं मुच्छिम पंचिदियतिरिक्खजोणिया' परिसर्प સ"મૂર્છિમ ૫ ચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક જીવ આ ચતુષ્પદ અને રિસર્પના ભેદ્રથી સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક જીવ એ પ્રકારના કહ્યા છે.
સ્થલચર
'से किं तं थलयरच उप्पय संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया' हे भगवन् मा સ્યલચર ચતુષ્પદ સંમૂર્ચ્છિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યં ચ જીવા ના કેટલા ભેદો કહેલા છે ? या प्रश्न ना उत्तरमा अछे ! - 'थलयरच उप्पयसंमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पण्णत्ता' हे गौतम ! स्थवयर अतुष्यः स भूमि यथेन्द्रिय तियज्योकि वो यार प्रहारना डेला छे. 'तं जहा' ते यार प्रहारे या प्रमाणे छे. 'एग खुरा, दुखुरा, गंडिया, सणप्फया जाव' मे भरी राजा, मे अरीवाजा, गांडीय मने સનખપદ, અહિયાં યાવત પદથી પ્રજ્ઞાપના સૂત્રને આ પ્રકરણ ને લગતા પાઠ સંગ્રહીત
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જીવાભિગમસૂત્ર