Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१८४
जीवाभिगमसूत्रे सर्वे वायुकायिकतया प्रतिपत्तव्याः । ते समासओ दुविहा पनत्ता तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य' ते उपरोक्ता वाताः समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चापर्याप्तकाश्च ॥
सम्प्रति बादरवायुकायिकानां शरीरादि द्वारचिन्तनाय प्रश्नयन्नाह-'तेसि णं भंते ! जीवानां कति शरीराणि प्रज्ञप्तानि कथितानीति शरीरद्वारे प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि सरीरंगा पन्नत्ता' चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि–कथितानि 'तं जहा' तद्यथा-'ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए' औदारिकं वैक्रियं तैजसं कार्मणं च, एतच्छरीरचतुष्टयं बादरवायुकायिकानां वैक्रियशरीरस्याधिकस्यापि संभवादिति, । 'सरोरगा पडागसंठिया' शरीराणि बादरवायुकायिकानां पताका संस्थानसंस्थितानि भवन्ति । 'चत्तारि समुग्घाया, वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्धाए मारणांतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए' वात हैं तथा इनसे भिन्न जो और भी वायु है वे सब वायुकायिक है । ये-वायुकायिक जीव पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं।
अब बादर वायुकायिकों के शरीरादि द्वारों के विषय में गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते है"ते सिणं भंते"! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता"हे भदन्त ! इन बादर वायुकायिकों के कितने शरीर होते हैं ? ऐसा यह शरीरद्वार में गौतम का प्रश्न हैं-इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं "गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता" हे गौतम ! बादर वायुकायिको के चार शरीर होते हैं "तं जहा" जैसे-'ओरालिए वेउचिए, तेयए, कम्मए" औदारिक, वैक्रिय, तैजस, और कार्मण यहां बादर वायुकायिक जीवों के एक वैक्रिय शरीर अधिक कहा गया है। क्योंकि उसकी यहां संभावना है। "सरीरगा पडागसंठिया': इन बादर वायुकायिक जीवों के शरीर संस्थान पताका के जैसा होता है । "चत्तारि समुग्घाया” इनके चार समुदधात होते हैं जिनके આ કહેલ પ્રકારથી બીજા પણ જે વાયુઓ હોય છે તે બધા વાચકાયિકો જ કહેવાય છે. આ વાયુ કાયિક , પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્તના ભેદથી બે પ્રકારના થાય છે.
હવે બાદર વાયુકાયિકોના શરીર વિગેરે દ્વારોના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને पूछे छे है-"तेसिं गं भंते ! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता" सावन मा मा२ वायुકાયિકાના કેટલા શરીર હોય છે ? આ પ્રમાણે આ શરીર દ્વારના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વાभीनी प्रश्न छ. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन हे छ-"गोयमा! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता" गौतम! ॥४२ वायुयाने यार शरी२ डाय छे. “तं जहा" ते मा प्रमाणे छ. सम-“ओरालिए, वेउदिवए, तेयए, कम्मए," मोहारि४, वैश्य, तेस અને કામણ. અહિયાં બાદર વાયુકાયિક જીવોને એક વૈક્રિય શરીર અધિક કહેલ છે. કેમકે महियां तनी संभावना छ. “सरीरगा पडागसंठिया" मा मा२ वायुयि वाने शरीरनु सस्थान ५ut-नारे हाय छे. "चत्तारि समुग्धाया” मा वायु यि ७वाने
જીવાભિગમસૂત્ર