Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 3- भक्त परिज्ञा 8- गणि विद्या 4- संस्तारक महा प्रत्याख्यान 5- तन्दुल वैचारिक 10- वीर स्तव चूलिका 1- नन्दीसूत्र 2- अनुयोगद्वार सूत्र इस प्रकार जावरा में भगवती सूत्र का स्वाध्याय करते हुए मन में विचार आया किःक्यों न इनका : ऐसे ज्ञान गर्भित सूत्रों का : राष्ट्र भाषा हिन्दी में अनुवाद किया जावे। विचारों को पूर्ण साकार रूप देने के पूर्व गंभीर चिन्तन किया। क्योंकि- आगमों का अध्ययन सुलभ नहीं है। और योग क्रिया पूर्व वाचने का अधिकार भी नहीं है। किन्तु चिन्तन इस निर्णय पर रहा है कि अभी तपागच्छीय मुनिराज द्वारा गुजराती में 45 आगम निकाले गये है। स्थानक वासी के 32 आगम हिन्दी अंग्रेजी और सचित्र छप गये है तेरापंथी समाज के भी 32 आगम हिन्दी में छप गये है और अंग्रेजी में छप जाने से पाश्चात्य विद्वान भी उदाहरण दे रहे है तो क्यों न हिन्दी में भी अनुवाद हो ? कुछ आगम के ज्ञाता आचार्य वर्यो से विचार किया, विचारों का सार यही रहा कि- विवादित गुढ़ रहस्य ग्रन्थ को क छूकर अन्य उपयोगी ग्रन्थों का ही विचार करें। विचार भावना को कार्य रूप में परिणित करने के विचार से मुंबई पंडितवर्य श्री रमेशभाइ से संपर्क किया, पंडितजी मेरे विचारों की अनुमोदना करते हुए सभी प्रकार से पूर्ण सहयोग देने का विश्वास दिलाया एवं संपादन कार्य करने की स्वीकृति प्रदान की। ___आगम की द्वादशांगी के प्रथम अंगसूत्र आचारांग सूत्र है एतदर्थ सर्व प्रथम आचारांग सूत्र की श्री शीलांकाचार्य विरचित वृत्ति का कार्य प्रारंभ किया जावे। इस आचारांग सूत्र का सर्व प्रथम महत्त्व यह है कि-दशवैकालिकसूत्र की रचना होने के पूर्वकाल में नवदीक्षित साधु एवं साध्वीजी म. को आचारांग सूत्र का यह प्रथम अध्ययन, सूत्र-अर्थ एवं तदुभय (आचरणा) से देकर हि उपस्थापना याने बडी दीक्षा दी जाती थी... किंतु श्री शय्यंभवसूरिजी ने मनक मुनी का अल्पायु जानकर, अल्पकाल में आत्महित कैसे हो ? इस प्रश्न की विचारणा में दशवैकालिक सूत्रकी संकलना की अर्थात् रचना की, तब से नवदीक्षित मुनि एवं साध्वीजी म. को दशवै. सूत्र के चार अध्ययन सूत्र-अर्थ एवं तदुभय से देने के बाद बडी दीक्षा होती है... लेखन कार्य श्रम पूर्ण होने पर प्रकाशन कार्य भी कम श्रम पूर्ण नहीं है। इसके लिये