Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 340
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1-6-6 (54) 281 शस्त्रोंसे सकायके समारंभके द्वारा सकायशस्त्रको आरंभ करनेवाले अन्य अनेक प्रकारके प्राणीओंका वध करते हैं... इस विषयमें निश्चित हि परमात्माने परिज्ञा कही है, इस तुच्छ जीवितव्यके वंदन, मानन एवं पूजनके लिये, जन्म-मरण से छुटनेके लिये और दुःखोंके विनाशके लिये वह स्वयं हि त्रसकायशस्त्रका आरंभ करता है, अन्योंके द्वारा असकायशस्त्रका समारंभ करवाता है, और उसकायशस्त्रका समारंभ करनेवाले अन्यका अनुमोदन करता है... किंतु वह समारंभ उनके अहित एवं अबोधिके लिये होता है... इस समारंभको जाननेवाला सम्यग्दर्शनादि चारित्रको लेकर और परमातमा अथवा साधुओंके मुखसे सुनकर यह जाना-समझा है कियह समारंभ निश्चित हि ग्रंथ है, मोह है, मार है और नरक है... और इस समारंभमें आसक्त लोग, विविध प्रकारके शस्त्रोंसे त्रसकायके समारंभके द्वारा सकायशस्त्रका समारंभ करनेवाले, अन्य अनेक प्रकारके प्राणीओका वध करतें हैं // 53 / / V टीका-अनुवाद : __ इस सूत्रकी व्याख्या पूर्वकी तरह हि है, अतः वहांसे समझीएगा... अब जो कोइ मनुष्य जिस कीसी कारणको लेकर सजीवोंका वध करता है, वह बात अब सूत्रकार महर्षि आगसे के सूत्रसे कहेंगे... .. VI सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या, पृथ्वी और अप्काय के प्रकरण में विस्तार से कर चुके हैं / यहां इतना ही बता देना पर्याप्त होगा कि प्रस्तुत सूत्र में अध्यात्म योग साधना की और भी एक संकेत है / साधक को अध्यात्मिक साधना के द्वारा आत्मशक्ति को विकसित करना चाहिए / आध्यात्मिक साधना का अर्थ है-योगों को स्थिर करना या सावध कार्यों से हटाकर साधना में स्थिर होना / इसका स्पष्ट अर्थ है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति एवं त्रस आदि समस्त प्राणी जगत के साथ समता एवं मैत्री भाव स्थापित करके, सर्व जीवों की हिंसा से त्रिकरण एवं त्रियोग से निवृत्त होना, इसी को अध्यात्म योग कहा है / यह पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि- प्रमादी जीव, आतुरता के वश तथा अपने विषयसुखों को साधनेके लिए या अपने जीवनको सुमखय बनाने के लिए हिंसा में प्रवृत्त होते हैं / किन्तु यहां इसके अतिरिक्त भी हिंसामें प्रवृत्त होने के और भी कई कारण हैं / अतः इन कारणों का स्वरूप, सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... . I सूत्र // 6 // // 54 // से बेमि अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए, पित्ताए, वसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, वालाए, सिंगाए, विसाणाए,

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