Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 292 // 1-1 - 7 - 2 (57) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन भाषा में आगे के सूत्रसे कहे जाने वाले गुणों से युक्त हो... I सूत्र // 2 // // 57 // आयंकदंसी अहियंति नच्चा, जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणड, जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ, एयं तुलमण्णेसिं // 57 // II संस्कृत-छाया : आतङ्कदर्शी अहितं इति मत्वा (ज्ञात्वा), यः अध्यात्म जानाति सः बहिः जानाति, यः बहिः जानाति सः अध्यात्म जानाति, एतां तुलां अन्वेषयेत् // 57 // III शब्दार्थ : अहियंति-वायुकायिक जीवों की रक्षा वही कर सकता है, जो आरंभ को अहितकर / / णच्चा-जानकर / आयंकदंसी-आतंकदर्शी-दुःखों का ज्ञाता है, द्रष्टा है / जे-जो। अज्झत्थंआत्म स्थित-अपने सुख-दुःख को / जाणइ-जानता है / से-वह / बहिआ-अन्य प्राणियों के सुख-दुःख आदि को जानता है / जे–जो / बहिया-अन्य प्राणियों के सुख-दुःख को / जाणइ-जानता है / से-वह / अज्झत्थं जाणड-अपने सुख-दुःख को जानता है / एवं-इन दोनों को / तुलं-तुल्य / अन्नेसि-गवेषण करे अर्थात् जगत के अन्य जीवों को अपने समान जानकर उनकी रक्षा करे / IV सूत्रार्थ : आतंकको देखनेवाला मुनी वायुकाय-समारंभ अहितकर है ऐसा जानकर... जो आत्माके अंदर देखता है वह बहार भी देखता है और जो बहारके पदार्थोको जानता है वह आत्माके अंदरके स्वरूपको भी जानता है, इस तुलनाकी गवेषणा (शोध) कीजीये // 57 // v टीका-अनुवाद : आतंक याने कष्टवाला जीवन... वह आतंक दो प्रकारका है... 1. शारीरिक 2. मानसिक... शारीरिक-आतंक = कांटे, क्षार, शस्त्र, गंडलूता आदिसे उत्पन्न हुआ शारीरिक आतंक... मानसिक आतंक - प्रियका वियोग, अप्रियका संयोग, इच्छितकी अप्राप्ति, दरिद्रता, और मानसिक विकारोकी पीडा...