Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 365
________________ 306 1 - 1 - 7 - 7 (62) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तं परिणाय मेहावी नेव सयं छज्जीवनिकायसत्थं समारंभेज्जा, नेवऽण्णेहिं छज्जीवनिकायसत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे छज्जीवनिकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा / जस्सेते छज्जीवनिकायसत्थसमारंभा परिणाया भवंति, से ह मुणी परिण्णायकम्मे ति बेमि // 12 // II संस्कृत-छाया : स: वसुमान् सर्वसमन्वागतप्रज्ञानेन आत्मना अकरणीयं पापं कर्म न अन्वेषयत्, तं परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयं षड्जीवनिकायथखं समारभेत, नैवाऽन्यः षड्जीवनिकायशवं समारम्भयेत्, नैवाऽन्यान् षड्जीवनिकायथसं समारभमाणान् समनुजानीयात्, यस्य एते षड् जीवनिकायशव-समारम्भाः परिज्ञाताः भवन्ति, सः खु मुनिः परिज्ञातकर्मा इति ब्रवीमि // 2 // III शब्दार्थ : से-वह 6 काय के आरंभ से निवृत्त हुआ मुनि / वसुमं-चारित्र रूप धन-ऐश्वर्य संपन्न / सव्वसमण्णागयपण्णाणेणं-सर्व प्रकार से बोध एवं ज्ञान युक्त / अप्पाणेणं-अपनी आत्मा से। अकरणिज्जं-अकरणीय-अनाचरणीय है, जो / पाव कम्म-१८ पाप कर्म, उनके / णो अण्णेसिं-उपार्जन का प्रयत्न न करे / तं-उस पाप कर्म को / परिण्णाय-जानकर / मेहावीबुद्धिमान साधु / णेव सयं-न स्वयं / छज्जीवनिकायसत्थं- काय के शस्त्र का / समारंभेज्जासमारंभ करे / णेवण्णेहि-न अन्य से / छज्जीवनिकाय सत्थं-६ काय के शस्त्र का / समारंभावेज्जा-समारंभ करावे; तथा / छज्जीवनिकायसत्थं- काय के शस्त्र का। समारंभतेसमारंभ करने वाले / अण्णे-अन्य व्यक्ति को / णेव समणुजाणेज्जा-न अच्छा समझे या उसका समर्थन भी न करे / जस्सेते-जिसको यह / छज्जीवनिकाय सत्थं समारंभा-६ काय के शस्त्र का समारंभ / परिण्णाय भवंति-परिज्ञात हैं / से हु मुणी-वही मुनि / परिणाय कम्मे-परिज्ञात कर्मा है / ति बेमि-इस प्रकार मैं कहता हं / IV सूत्रार्थ : वह मुनी वसुमान् है, कि- जो सर्वसमन्वागत प्रज्ञानवाला आत्मा अकरणीय पाप कर्म न करे... उस पाप कर्मको जानकर मेधावी-साधु स्वयं छजीव निकायशस्त्रका समारंभ न करे, अन्योंके द्वारा छजीव निकायशस्त्रका समारंभ न करावे, छजीवनिकाय शस्त्रका समारंभ करनेवाले अन्योंका अनुमोदन न करें... जिसने यह सभी छजीवनिकायशस्त्र समारंभ परिज्ञात कीये है, वह हि मुनी परिज्ञातकर्मा है, ऐसा मैं कहता हुं || 62 // V टीका-अनुवाद : पृथ्वीकाय आदि उद्देशकमें कहे गये निवृत्ति गुणवाले अर्थात् छ जीवनिकायके वध से

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