Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 1 - 1 - 7 - 6 (61) 303 VI सूत्रसार : वायु के प्रवाह में बहुत से छोटे-मोटे जीव मूर्छित होकर अपने प्राण खो देते हैं / और यह भी स्पष्ट है कि- वायु के साथ अन्य अनेक त्रस जीव रहे हुए है / अतः वायु का आरम्भ करने से उनकी भी हिंसा हो जाती है / जैसे पंखा चलाने से वायु के साथ अन्य त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है / इसी प्रकार ढोल, मृदंग एवं वाजिंत्र का उपयोग करने से वायु के साथ अनेक प्राणियों की हिंसा होती है / इसलिए मुमुक्षु पुरुष को वायु के समारम्भ से सर्वथा दूर रहना चाहिए / ___ जो व्यक्ति वायुकाय का समारम्भ करता है, वह उसके स्वरूप को भली-भांति नहीं जानता है / इसी कारण वह उसकी हिंसा में प्रवृत्त होता है / परन्तु जिस व्यक्ति को वायु के आरम्भ का स्वरूप परिज्ञात है, वह उसके आरम्भ में प्रवृत्त नहीं होता / इसलिए वही मुनि परिज्ञात कर्मा कहा गया है / यह प्रस्तुत सूत्र का तात्पर्य है / 'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् जानना चाहिए / . प्रथम अध्ययन के सात उद्देशों में सामान्य रूप से आत्मा और कर्म के संबन्ध का तथा 2 से 7 पर्यंत के उद्देशों में पृथक्-पृथक् रूप से 6 काय का वर्णन करके अब उपसंहार के रूप में सूत्रकार छः काय के स्वरूप का एवं उसकी हिंसा से निवृत्त होने का उपदेश देते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहेंगे... I सूत्र // 6 // // 11 // एत्थंपि जाणे उवादीयमाणा, जे आयारे न रमंति, आरंभमाणा विनयं वयंति, छंदोवणीया ''अज्झोववएणा, आरंभसत्ता पकरंति संगं // 11 // II संस्कृत-छाया : एतस्मिन्नपि जाने उपादीयमानान्, ये आचारे न रमन्ते, आरम्भमाणाः विनयं वदन्ति, छन्दोपनीताः (छन्दसा उपनीताः) अध्युपपन्नाः आरम्भसक्ताः प्रकुर्वन्ति सङ्गम् // 11 // III शब्दार्थ : एत्थंपि-वायुकाय एवं अन्य पृथ्वी आदि 6 काय का जो आरंभ करते हैं, वे / उवादीयमाणा-कर्मों से आबद्ध होते हैं / जाणे-हे शिष्य तू ! इस बात को देख कि आरंभ कौन करते हैं ? / जे आयारे ण रमंति-जो आचार-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार में रमण नहीं करते, और / आरंभमाणा-आरंभ करते हुए। विणयं-हम संयम में स्थित हैं, इस प्रकार / वयंति-बोलते हैं / छंदोवणीया-वे अपने विचारानसार स्वेच्छा से विचरण करने