Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 280 #1-1-6-5(53) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अन्यान् अनेकरूपान् प्राणिन: विहिनस्ति // 53 // III शब्दार्थ : लज्जमाणा-लज्जा पाते हुए / पुढो-पृथक्-पृथक् वादियों को / पास-हे शिष्य ! तू देख / अणगारामोत्ति-हम अनगार हैं / एगे-कोई कोई वादी / पवयमाणा-कहते हुए / जमिणं-जो यह प्रत्यक्ष / विसवसवेहि-नाना प्रकार के / सत्थेहि-शस्त्रों से / प्रसकायसमारंभेण-ग्रसकाय के समारंभ-हिंसा के निमित्त / तसकाय सत्थं-सकाय शस्त्र का। समारम्भमाणा-समारम्भका प्रयोग करते हुए / अण्णे-अन्य / अणेगसवे-अनेक प्रकार के। पाणे-प्राणियों की / विहिंसंति-हिंसा करते हैं / तत्थ खलु-वहां निश्चय ही / भगवयाभगवान ने / परिण्णा पवेड्या-परिज्ञा ज्ञान से यह प्रतिपादन किया है / इमस्स चेव जीवियस्स-इस जीवन के निमित्त / परिवंदण-प्रशंसा के लिए / माणण-सम्मान के लिए / / पूयणाए-पूजा के लिए / जाइ-मरण-मोयणाए-जन्म-मरण से छूटने के लिए / दुक्खपडिघायहेउं-दुःख प्रतिघात के लिए / से-वह / सयमेव-स्वयं / तसकायसत्थं-त्रसकाय शस्त्र का / समारभड़-समारंभ-हिंसा करता है / वा-अथवा / अण्णेहि-दूसरों से / तसकायसत्थं-सकाय शस्त्र का / समारम्भावेड्-समारम्भ कराता है / वा-अथवा / अण्णेअन्य / तसकायसत्थं-प्रसकाय शस्त्र द्वारा / समारम्भमाणे-समारम्भ करनेवालों की / समणुजाणइ-अनुमोदन करता है / तं-वह उसकाय का आरम्भः / से-उसको / अहियाएअहित के लिए है / तं-वह-आरम्भ / से-उसको। अबोहियाए-अबोधि के लिए है / से-वह। तं-उस आरम्भ के फल के / संवुज्झमाणे-संबोध को प्राप्त होता हुआ / आयाणीयंआचरणीय-सम्यग् दर्शनादि विषय में / समुट्ठाय-सावधान होकर / सोच्चा-सुनकर / भगवओ-भगवान वा / अणगाराणं-अनगारों के / अंतीए-समीप / इह-इस संसार में / एगेसिं-किसी-किसी जीव को / णायं-विदित / भवति-होता है / एस खलु-निश्चय ही यह आरम्भ / गंथे-आठ कर्मों की ग्रन्थी रूप है / एस खलु-यह आरंभ / मोहे-मोह अज्ञान रूप है / एस खलु-यह आरंभ / मारे-मृत्यु रूप है / एस खलु-यह आरंभ / णरए-नरक रूप हैं / इच्चत्थं-इस प्रकार अर्थादि में / गड्ढिए-मूर्छित है / लोए-लोक-प्राणि समुदाय / जमिणं-जिस कारण से / विसवसवेहि-नाना प्रकार के / सत्थेहि-शस्त्रों से / तसकाय समारम्भेणं-त्रसकाय के समारंभ के निमित्त / तसकाय सत्थं-त्रसकाय शस्त्र का / समारम्भमाणे-समारंभ करता हुआ / अण्णे-अन्य / अणेगसवे-अनेक प्रकार के / पाणेप्राणियों की / विहिंसति-विविध प्रकार से हिंसा करता है / IV सूत्रार्थ : लज्जा पानेवाले इन लोगोंको देखो! हम अणगार हैं ऐसा कहनेवाले विविध प्रकारके