Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सबोधनी आहोरी-हिन्दी- टीका # 1 - 1 - 6 - 7 (55) 285 इत्यादि... इसी तरह मांस एवं खूनके लिए बकरे, मृग, शूकर आदिका, पित्त एवं पंख आदि के लिए मयूर, तीतर मुर्गा आदि पक्षियों का, चर्बी के लिए व्याघ, शूकर, मछली, आदि का, पूंछके लिए चमरी गाय का; शृंगके लिए मृग, बारहसींगा आदि का, विषाण के लिए या सूअर का। दांतके लिए हाथी का, दाढ़ के लिए वराह आदिका, स्नायु के लिए गो-महिषी आदिका अस्थि के लिए शंख, छीप आदिका, अस्थि-मज्जा के लिए सूअर आदिका वध करते हैं / अनेक लोग अपने प्रयोजन से पशु-पक्षियों का वध करते हैं और कुछ एक व्यक्ति निष्प्रयोजन ही अर्थात् केवल कुतूहल के लिए, मनोरंज के लिए अनेक प्राणियों की जान ले लेते हैं / कुछ व्यक्ति सिंह-सर्प आदि को इसलिए मार देते हैं कि- इन्होंने मेरे स्वजन-स्नेहिजनों को मारा था। कुछ लोग उन्हें इसलिए मार देते हैं कि- यह विषाक्त जन्तु मुझे मारते हैं और कुछ व्यक्ति इस संदेह से ही उनका प्राण ले लेते हैं कि- यह जन्तु भविष्य में मुझे मारेंगें / इस प्रकार अनेक संकल्प-विकल्प एवं अज्ञानता के वश व्यक्ति, स जीवों की हिंसामें प्रवृत्त होते हैं / और उससे प्रगाढ़ कर्म बन्ध करके संसार में परिभ्रमण करते हैं / इसलिए विवेकशील पुरुषको इन हिंसा जन्य कार्यों से दूर रहना चाहिए। अतः हिंसा के त्यागी साधुओं का स्वरूप, अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... I सूत्र // 7 // // 55 // ___एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी नेव सयं तसकायसत्थं समारंभेज्जा, नेवडण्णेहिं तसकायसत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे तसकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा, जस्सेते तसकायसमारंभा परिण्णाया भवंति, से ह मुणी परिणायकम्मे त्ति बेमि // 55 // II संस्कृत-छाया : एतस्मिन् शखं समारभमाणस्य इत्येते आरम्भाः अपरिज्ञाताः भवन्ति, एतस्मिन् थसं असमारभमाणस्य इत्येते आरम्भाः परिज्ञाता भवन्ति / तं परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयं असफायथखं समारभेत, नैवाऽन्यैः सकायशवं समारम्भयेत्, नैवाऽन्यान् असकायशवं समारभमाणान् समनुजानीत / यस्यैते असकायसमारम्भाः परिज्ञाताः भवन्ति, सः खु मुनिः परिज्ञातकर्मा इति ब्रवीति // 16 // III शब्दार्थ : एत्थ-इस अस काय के विषय में | सत्थं-शस्त्र का / समारंभमाणस्स-समारंभ करने वाले को / इच्चेते-यह सभी / आरंभा-समारंभ / अपरिणाया भवंति-अपरिज्ञात होते हैं / एत्थ-इस त्रसकाय के विषय में | सत्थं-शस्त्र का / असमारम्भमाणस्स-समारम्भ नहीं