Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1-2-4 (17) 147 है / अपने भोगसुख के लिए वह दूसरे प्राणियों का शोषण करता है, उन्हें पीड़ित-उत्पीड़ित करता है, उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करता है / स्वयं उनकी हिंसा करता है, दूसरे व्यक्ति को आदेश देकर उक्त जीवों की हिंसा कराता है और उक्त जीवों की हिंसा करने वाले हिंसक का अनुमोदन समर्थन करता है / ___ इसलिए भगवान महावीर ने पृथ्वीकाय के समारंभ में परिज्ञा याने विवेक यतना करने का उपदेश दिया है / साधक को यह बताया गया है कि वह ज्ञ परिज्ञा से पृथ्वीकाय के स्वरूप को भली-भांति समझे / उसमें भी मेरे जैसी असंख्यात प्रदेशी ज्ञानमय आत्मा है / उसे भी मेरी तरह सुख-दुःख का संवेदनं होता है / आदि बातों का बोध करे और उसके चेतनामय स्वरूप को जानकर उसकी हिंसा करने, कराने और अनुमोदन करने का त्याग करे / मन, वचन, काय के योगों से पृथ्वीकाय की हिंसा न करे अर्थात् विवेक के साथ संयम साधना में प्रवृत्ति करे / इस साधना से जो लब्धि-शक्ति प्राप्त हो उसका उपयोग भौतिक सुख-साधनों को प्राप्त करने में न करे / यदि वह ऐहिक सुखों एवं भोगों को प्राप्त करने में उस शक्ति लब्धि का प्रयोग करता है, तो वह साधना मार्ग से लौटकर संसार में परिभ्रमण करता है / अतः साधक को साधना से प्राप्त लब्धि का उपयोग, भौतिक सुखों को प्राप्त करने में नहीं लगाना चाहिए / पृथ्वीकाय के आरंभ-समारंभ में व्यस्त रहने वाले जीवों को जो दुःख फल की प्राप्ति होती है, इसका उल्लेख, सूत्रकार महर्षि अब आगे के सूत्र से करेंगे... I सूत्र // 4 // // 4 // // 17 // तं से अहिआए, तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुठ्ठाय सोचा खलु भगवओ अणगाराणं इहमेगेसिं णातं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए, इच्चत्थं गड्ढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगसवे पाणे विहिंसइ, से बेमि अप्पेगे अंधमब्भे अप्पेगे पायमभे अप्पेगे गुप्फमब्भे अप्पेगे जंघमब्भे अप्पेगे जाणुमब्भे अप्पेगे उरुमब्भे अप्पेगे कडिमब्भे अप्पेगे नाभिमब्भे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमच्छे अप्पेगे जाणुमच्छे अप्पेगे उरुमच्छे अप्पेगे कडिमच्छे अप्पेगे नाभिमच्छे