Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 260 1 - 1 - 6 - 1 (49) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 1 उद्देशक - 6 . त्रसकायम पांचवा उद्देशक पूर्ण हुआ... अब छठे उद्देशकका आरंभ करतें हैं... पांचवे उद्देशकमें वनस्पतिकायका प्रतिपादन कीया, अब वनस्पतिकायके बाद उसकायका आगमसूत्रमें कथन होनेसे त्रसकायके स्वरूपका बोध-ज्ञानके लिये इस छठे उद्देशकका आरंभ करतें हैं... इस छठे उद्देशकका उपक्रम आदि चार अनुयोग द्वार तब तक स्वयं समझ लीजीये कि- जब तक नाम निष्पन्न निक्षेपमें सकाय - उद्देशकका स्वरूप कथन करें... सकायके अधिकारमें पृथ्वीकायकी तरह सभी द्वार होतें हैं किंतु जहां भिन्नता है वहां अतिदेश (हवाले) के द्वारा एवं विधान (भेद) आदि द्वार नियुक्तिकार कहतें हैं... नि. 152 पृथ्वीकायके अधिकारमें कहे गये द्वार यहां त्रसकायके अधिकारमें भी होतें हैं किंतु विधान (भेद), परिमाण, उपभोग, शस्त्र तथा लक्षण द्वार नियुक्तिकी गाथाओंसे कहतें हैं... विधान (भेद - प्रकार) द्वार... नि. 153 असन याने स्पंदन करनेवाले त्रस तथा जीवन याने प्राणोंको धारण करनेवाले जीव... त्रस स्वरूपवाले जो जीव वह सजीव... उनके दो भेद है... 1. लब्धिास 2. गतित्रस... 1. लब्धित्रस = लब्धिसे त्रस वह लब्धित्रस... जैसे कि- तेउकाय एवं वाउकाय... लब्धि याने शक्तिमात्र... लब्धिास ऐसे तेउकाय एवं वाउकायका यहां अधिकार नहिं है, क्योंकि- तेउकाय का स्वरूप कह चुके हैं और वाउकायका स्वरूप आगे कहेंगे... अतः सामर्थ्यसे गतित्रसका हि यहां अधिकार है... 2. गतिास = गतित्रस कौन कौन है ? और उनके कितने भेद हैं ? वह अब नियुक्तिकी गाथासे कहतें हैं...